10 Class social science Civics Notes in hindi chapter 6 Political Parties अध्याय - 6 राजनीतिक दल
10 Class social science Civics Notes in hindi chapter 6 Political Parties अध्याय - 6 राजनीतिक दल
CBSE Revision Notes for CBSE Class 10 Social Science POL Political Parties POL Political Parties: What role do political parties playin competition and contestation? Why have social movements come to occupy large role in politics?
CBSE Revision Notes for CBSE Class 10 Social Science POL Political Parties POL Political Parties: What role do political parties playin competition and contestation? Why have social movements come to occupy large role in politics?
Class 10th social science Civics chapter 6 Political Parties Notes in Hindi
📚 अध्याय - 6 📚
👉 राजनीतिक दल 👈
✳️ राजनीतिक पार्टी :-
🔹 एक ऐसा समूह जिसका निर्माण चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से हुआ हो , राजनीतिक पार्टी या दल कहलाता है । किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल लोग कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं जिसका लक्ष्य समाज का भलाई करना होता है ।
🔹 एक राजनीतिक पार्टी लोगों को इस बात का भरोसा दिलाती है उसकी नीतियाँ अन्य पार्टियों से बेहतर हैं । वह चुनाव जीतने की कोशिश करती है ताकि अपनी नीतियों को लागू कर सके ।
🔹 विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ हमारे समाज के मूलभूत राजनैतिक विभाजन का प्रतिबिंब होते हैं । कोई भी राजनीतिक पार्टी समाज के किसी खास पार्ट का प्रतिनिधित्व करती इसलिए इसमें पार्टिजनशिप की बात होती है । किसी भी पार्टी की पहचान इससे बनती है कि वह समाज के किस पार्ट की बात करती है , किन नीतियों का समर्थन करती है और किनके हितों की वकालत करती है ।
✳️ एक राजनैतिक पार्टी के तीन अवयव होते हैं :-
👉 नेता
👉 सक्रिय सदस्य
👉 अनुयायी
✳️ राजनीतिक पार्टी के कार्य :-
🔹 राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का इस्तेमाल करना ही किसी पार्टी का मुख्य कार्य होता है । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राजनीतिक पार्टियाँ निम्नलिखित कार्य करती हैं :-
✴️ चुनाव लड़ना :- राजनीतिक पार्टी चुनाव लड़ती है । एक पार्टी अलग अलग निर्वाचन क्षेत्रों के लिये अपने उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है ।
✴️ नीति बनाना :- हर राजनीतिक पार्टी जनहित को लक्ष्य में रखते हुए अपनी नीति बनाती है । वह अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के सामने प्रस्तुत करती है । इससे जनता को इस बात में मदद मिलती है कि वह किसी एक पार्टी का चुनाव कर सके । एक राजनीतिक पार्टी एक ही मानसिकता वाले लाखों करोड़ों मतदाताओं को एक ही छत के नीचे लाने का काम करती है । जब किसी पार्टी को जनता सरकार बनाने के लिये चुनती है तो वह उस पार्टी से अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को मूर्त रूप देने की अपेक्षा रखती है ।
✴️ कानून बनाना :- हम जानते हैं कि विधायिका में समुचित बहस के बाद ही कोई कानून बनता है । विधायिका के ज्यादातर सदस्य राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं इसलिए किसी भी कानून के बनने की प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियों की प्रत्यक्ष भूमिका होती है ।
✴️ सरकार बनाना :- जब कोई राजनीतिक पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतती है तो वह सरकार बनाती है । सत्ताधारी पार्टी के लोग ही कार्यपालिका का गठन करते हैं । सरकार चलाने के लिये विभिन्न राजनेताओं को अलग अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी जाती है ।
✴️ विपक्ष की भूमिका :- जो पार्टी सरकार नहीं बना पाती है उसे विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ती है ।
✴️ जनमत का निर्माण :- राजनीतिक पार्टी का एक महत्वपूर्ण काम होता है जनमत का निर्माण करना । इसके लिये वे विधायिका और मीडिया में ज्वलंत मुद्दों को उठाती हैं और उन्हें हवा देती हैं । पार्टी के कार्यकर्ता पूरे देश में फैलकर अपने मुद्दों से जनता को अवगत कराते हैं ।
✴️ सरकारी मशीनरी तक लोगों की पहुँच बनाना :- राजनीतिक पार्टी लोगों और सरकारी मशीनरी के बीच एक कड़ी का काम करती है । वे जनकल्याण योजनाओं को लोगों तक पहुँचाती हैं ।
✳️ राजनीतिक पार्टी की जरूरत :-
🔹 लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है । यदि कोई पार्टी न हो तो हर उम्मीदवार एक स्वतंत्र उम्मीदवार होगा । भारत में लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं । यदि हर सदस्य स्वतंत्र रूप से चुनाव जीत कर आयेगा तो स्थिति बड़ी भयावह हो जायेगी । कोई भी दो सदस्य किसी एक मुद्दे पर एक ही तरह से सोचने में असमर्थ होगा । एक सांसद हमेशा अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्र हित को दरकिनार कर देगा । राजनीतिक पार्टी विभिन्न सोच के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का काम करती ताकि वे सभी मिलकर किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी सोच बना सकें ।
🔹 आज पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया गया है । ऐसे लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं । यथार्थ में यह संभव नहीं है कि हर नागरिक प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने में योगदान दे पाये । इसी सिस्टम ने राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है ।
✳️ कितने राजनीतिक दल :-
🔹 कुछ देशों में एक ही पार्टी होती है , जबकि कुछ देशों में दो पार्टियाँ होती हैं तो कुछ देशों में अनेक पार्टियाँ होती हैं । किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं । हर तरह के सिस्टम के अपने गुण और दोष होते हैं ।
🔹 चीन में एकल पार्टी सिस्टम है । लेकिन लोकतंत्र के दृष्टिकोण से यह सही नहीं है क्योंकि एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है ।
🔹 संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में दो पार्टी सिस्टम है । ऐसे सिस्टम में लोगों के पास विकल्प होता है ।
🔹 भारत में मल्टी पार्टी सिस्टम है और यहाँ कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं । भारत के समाज में भारी विविधता है । इसलिए यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है । मल्टी पार्टी सिस्टम में कई खामियाँ लगती हैं । कई बार इससे राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है और साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है । लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी सिस्टम से ही संभव हो पाता है ।
🔹 आजादी के बाद के शुरुआती दिनों से लेकर 1977 भारत में केंद्र में केवल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती थी । 1977 से 1980 के बीच जनता पार्टी की सरकार बनी । उसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस की सरकार बनी । फिर दो साल के अंतराल के बाद फिर से 1991 से 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही । फिर अगले 8 वर्षों तक गठबंधन की सरकारों का दौर चला । 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस पार्टी की ऐसी सरकार रही जिसमें अन्य पार्टियों का गठबंधन था । 2014 में 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और वह अपने दम पर सरकार बना पाई ।
✳️ राजनैतिक दलों में जन - भागीदारी :-
🔹 लोगों में एक आम धारणा बैठ गई है कि लोग राजनीतिक पार्टियों के प्रति उदासीन हो गये हैं । लोग राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा नहीं करते हैं ।
🔹 जो सबूत उपलब्ध हैं वो ये बताते हैं कि यह धारणा भारत के लिये कुछ हद तक सही है । पिछले कई दशकों में किये गये सर्वे से प्राप्त सबूतों के आधार पर निम्न बातें सामने आती हैं :
🔹 पूरे दक्षिण एशिया में लोगों का विश्वास राजनीतिक पार्टियों पर से उठ गया है । सर्वे में पूछा गया कि वे राजनीतिक पार्टियों पर ' एकदम भरोसा नहीं या ' बहुत भरोसा नहीं ' या ' कुछ भरोसा ' या ' पूरा भरोसा करते हैं । ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जिन्होंने कहा कि वे एकदम भरोसा नहीं ' या ' बहुत भरोसा नहीं करते हैं । जिन्होंने यह कहा कि वे ' कुछ भरोसा ' या ' पूरा भरोसा ' करते हैं उनकी संख्या कम थी ।
🔹 पूरी दुनिया में लोग राजनीतिक दलों पर कम ही भरोसा करते हैं और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं ।
🔹 लेकिन जब बात लोगों द्वारा राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों में भाग लेने की आती है तो स्थिति अलग हो जाती है । कई विकसित देशों की तुलना में भारत में ऐसे लोगों का अनुपात अधिक है जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं ।
🔹 पिछले तीन दशकों में ऐसे लोगों का प्रतिशत बढ़ा है जिन्होंने यह माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं । इस अवधि में ऐसे लोगों का अनुपात भी बढ़ा है जिन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के करीब हैं ।
✳️ राष्ट्रीय पार्टी :-
🔹 भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है । हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है । चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है । लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं । इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है , जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है । जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं ।
✴️ राज्य स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं ।
✴️ राष्ट्रीय स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है ।
👉 इस वर्गीकरण के अनुसार 2006 में देश में छ : राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं । इनका वर्णन नीचे दिया गया है ।
✴️ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस :- इसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है । यह एक बहुत पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी । भारत की आजादी में इस पार्टी की मुख्य भूमिका रही है । भारत की आजादी के बाद के कई दशकों तक कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई है । आजादी के बाद के सत्तर वर्षों में पचास से अधिक वर्षों तक इसी पार्टी की सरकार रही है ।
✴️ भारतीय जनता पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी । इस पार्टी को भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में माना जा सकता है । इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य है एक शक्तिशाली और आधुनिक भारत का निर्माण । भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है । यह पार्टी जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलयं चाहती है । यह धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना चाहती है और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है । 1990 के दशक में इस पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा । यह पार्टी पहली बार 1998 में सत्ता में आई और 2004 तक शासन किया । उसके बाद यह पार्टी 2014 में सत्ता में आई है ।
✴️ बहुजन समाज पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना कांसी राम के नेतृत्व में 1984 में हुई थी । यह पार्टी बहुजन समाज के लिये सत्ता चाहती है । बहुजन समाज में दलित , आदिवासी , ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं । इस पार्टी की पकडू उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी है और यह उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार भी बना चुकी है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी - मार्क्सवादी :- इस पार्टी की स्थापना 1964 में हुई थी । इस पार्टी की मुख्य विचारधारा मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर आधारित है । यह पार्टी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती है । इस पार्टी को पश्चिम बंगाल , केरल और त्रिपुरा में अच्छा समर्थन प्राप्त है ; खासकर से गरीबों , मिल मजदूरों , किसानों , कृषक श्रमिकों और बुद्धिजीवियों के बीच । लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इस पार्टी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है और पश्चिम बंगाल की सत्ता इसके हाथ से निकल गई है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी । इसकी नीतियाँ सीपीआई ( एम ) से मिलती जुलती हैं । 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद यह कमजोर हो गई । इस पार्टी को केरल , पश्चिम बंगाल , पंजाब , आंध्र प्रदेश और तामिलनाडु में ठीक ठाक समर्थन प्राप्त है । लेकिन इसका जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से खिसका है । 2004 के लोक सभा चुनाव में इस पार्टी को 1.4 % वोट मिले और 10 सीटें मिली थीं । शुरु में इस पार्टी ने यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था लेकिन 2008 के आखिर में इसने समर्थन वापस ले लिया ।
✴️ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी :- कांग्रेस पार्टी में फूट के परिणामस्वरूप 1999 में इस पार्टी का जन्म हुआ था । यह पार्टी लोकतंत्र , गांधीवाद , धर्मनिरपेक्षता , समानता , सामाजिक न्याय और संघीय ढाँचे की वकालत करती है । यह महाराष्ट्र में काफी शक्तिशाली है और इसको मेघालय , मणिपुर और असम में भी समर्थन प्राप्त है ।
✳️ क्षेत्रीय पार्टियों का उदय :- पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है । यह भारत में लोकतंत्र के फैलाव और उसकी गहरी होती जड़ों को दर्शाता है । कुछ क्षेत्रीय नेता अपने अपने राज्यों में काफी शक्तिशाली हैं । समाजवादी पार्टी , बीजू जनता दल , एआईडीएमके , डीएमके , आदि क्षेत्रीय पार्टी के उदाहरण हैं ।
✳️ राजनीतिक दलों के लिये चुनौतियाँ :-
🔹 आम जनता इस बात से नाराज रहती हैं कि राजनीतक दल अपना काम ठीक ढंग से नहीं करते । जनता हमेशा राजनीतिक दलों की आलोचना करती हैं । राजनीतिक दलों को अपना काम प्रभावी ढंग से चलाने के लिए कड़ी चुनौतियों का सामना करना पडता है । ये चुनौतियां हैं :-
👉 1. पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का न होना : - लोकतन्त्र का अर्थ कि कोई भी फेसला लेने से पहले कार्यकर्ताओ से परामर्श किया जाये परन्तु वास्तव मे ऐसा कुछ नहीं होता । ऊपर के कुछ नेता हि सभी फेसले ले लेते हैं।इस से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी रहती है जो दोनो पार्टी और जनता के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकती है ।
👉 2. पार्टी के बीच आंतरिक चुनाव भी नहीं होते ।
👉 3. पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते है ।
✴️ वंशवाद की चुनौती :- अधिकाश राजनीतिक दल पारदर्शी ढंग से अपना काम नहीं करते इस लिए उनके नेता इस बात का अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते है ।
✴️ पैसा और अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ :- राजनितिक दलो के सामने आने वाली तिसरी चुनौती , विशेषकर चुनाव के दिनों मे , और अपराधिक ततवो कि बढती घुसपैठ कि है । चुनाव जितने कि होड मे राजनितिक दल पैसे का अनुचित प्रयोग करके अपने दल का बहुमत सिद्ध करने का प्रयत्न करती हैं । राजनितिक दल उसी उम्मीदवार को टिकट देते हैं जिसके पास पैसा होता है , क्योंकि चुनाव में बहुत पैसा खर्च होता है । राजनितिक दल यह नहीं देखते कि वो व्यक्ति अपराधी तो नहीं है ।
✴️ पार्टियों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति :- आज के युग मे भारत मे हि नहीं वरन् विश्व - भर मे राजनितिक दलों के पास विकल्प कि कमी है । उनके पास नई - नई चिीजे पेश करनेखे लिए कुछ नहीं होता है ।
👉 राजनितिक दलों में सुधार लाने के लिये विभिन्न दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण अंतर लाना ही सार्थक विकल्प है ।
🔹 1. आजकल दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता है ।
🔹 2. हमारे देश में भी सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मामलों पर बड़ा कम अंतर रह गया है ।
🔹 3. जो लोग इससे अलग नीतियाँ चाहते है उनके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है ।
🔹 4. अच्छे नेताओं की कमी ।
✳️ राजनीतिक दलों को सुधारने के उपाय :-
🔹 हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में सुधार लाने के लिये कुछ उपाय नीचे दिये गये हैं :-
👉 दलबदल कानून :- इस कानून को राजीव गांधी की सरकार के समय पास किया गया था । इस कानून के मुताबिक यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी बदलता है तो उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो जायेगी । इस कानून से दलबदल को कम करने में काफी मदद मिली है । लेकिन इस कानून ने पार्टी में विरोध का स्वर उठाना मुश्किल कर दिया है । अब सांसद या विधायक को हर वह बात माननी पड़ती है जो पार्टी के नेता का निर्णय होता है ।
👉 नामांकण के समय संपत्ति और क्रिमिनल केस का ब्यौरा देना :- अब चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह नामांकण के समय एक शपथ पत्र दे जिसमें उसकी संपत्ति और उसपर चलने वाले क्रिमिनल केस का ब्यौरा हो । इससे जनता के पास अब उम्मीदवार के बारे में अधिक जानकारी होती है । लेकिन उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना की सत्यता जाँचने के लिये अभी कोई भी सिस्टम नहीं बना है ।
👉 अनिवार्य संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न :- चुनाव आयोग ने अब पार्टियों के लिये संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न को अनिवार्य कर दिया है । राजनीतिक पार्टियों ने इसे शुरु कर दिया है लेकिन अभी यह महज औपचारिकता के तौर पर होता है ।
✳️ राजनीतिक पार्टी :-
🔹 एक ऐसा समूह जिसका निर्माण चुनाव लड़ने और सरकार बनाने के उद्देश्य से हुआ हो , राजनीतिक पार्टी या दल कहलाता है । किसी भी राजनीतिक पार्टी में शामिल लोग कुछ नीतियों और कार्यक्रमों पर सहमत होते हैं जिसका लक्ष्य समाज का भलाई करना होता है ।
🔹 एक राजनीतिक पार्टी लोगों को इस बात का भरोसा दिलाती है उसकी नीतियाँ अन्य पार्टियों से बेहतर हैं । वह चुनाव जीतने की कोशिश करती है ताकि अपनी नीतियों को लागू कर सके ।
🔹 विभिन्न राजनीतिक पार्टियाँ हमारे समाज के मूलभूत राजनैतिक विभाजन का प्रतिबिंब होते हैं । कोई भी राजनीतिक पार्टी समाज के किसी खास पार्ट का प्रतिनिधित्व करती इसलिए इसमें पार्टिजनशिप की बात होती है । किसी भी पार्टी की पहचान इससे बनती है कि वह समाज के किस पार्ट की बात करती है , किन नीतियों का समर्थन करती है और किनके हितों की वकालत करती है ।
✳️ एक राजनैतिक पार्टी के तीन अवयव होते हैं :-
👉 नेता
👉 सक्रिय सदस्य
👉 अनुयायी
✳️ राजनीतिक पार्टी के कार्य :-
🔹 राजनैतिक पदों को भरना और सत्ता का इस्तेमाल करना ही किसी पार्टी का मुख्य कार्य होता है । इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये राजनीतिक पार्टियाँ निम्नलिखित कार्य करती हैं :-
✴️ चुनाव लड़ना :- राजनीतिक पार्टी चुनाव लड़ती है । एक पार्टी अलग अलग निर्वाचन क्षेत्रों के लिये अपने उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है ।
✴️ नीति बनाना :- हर राजनीतिक पार्टी जनहित को लक्ष्य में रखते हुए अपनी नीति बनाती है । वह अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को जनता के सामने प्रस्तुत करती है । इससे जनता को इस बात में मदद मिलती है कि वह किसी एक पार्टी का चुनाव कर सके । एक राजनीतिक पार्टी एक ही मानसिकता वाले लाखों करोड़ों मतदाताओं को एक ही छत के नीचे लाने का काम करती है । जब किसी पार्टी को जनता सरकार बनाने के लिये चुनती है तो वह उस पार्टी से अपनी नीतियों और कार्यक्रमों को मूर्त रूप देने की अपेक्षा रखती है ।
✴️ कानून बनाना :- हम जानते हैं कि विधायिका में समुचित बहस के बाद ही कोई कानून बनता है । विधायिका के ज्यादातर सदस्य राजनीतिक पार्टियों के सदस्य होते हैं इसलिए किसी भी कानून के बनने की प्रक्रिया में राजनीतिक पार्टियों की प्रत्यक्ष भूमिका होती है ।
✴️ सरकार बनाना :- जब कोई राजनीतिक पार्टी सबसे ज्यादा सीटों पर चुनाव जीतती है तो वह सरकार बनाती है । सत्ताधारी पार्टी के लोग ही कार्यपालिका का गठन करते हैं । सरकार चलाने के लिये विभिन्न राजनेताओं को अलग अलग मंत्रालयों की जिम्मेदारी दी जाती है ।
✴️ विपक्ष की भूमिका :- जो पार्टी सरकार नहीं बना पाती है उसे विपक्ष की भूमिका निभानी पड़ती है ।
✴️ जनमत का निर्माण :- राजनीतिक पार्टी का एक महत्वपूर्ण काम होता है जनमत का निर्माण करना । इसके लिये वे विधायिका और मीडिया में ज्वलंत मुद्दों को उठाती हैं और उन्हें हवा देती हैं । पार्टी के कार्यकर्ता पूरे देश में फैलकर अपने मुद्दों से जनता को अवगत कराते हैं ।
✴️ सरकारी मशीनरी तक लोगों की पहुँच बनाना :- राजनीतिक पार्टी लोगों और सरकारी मशीनरी के बीच एक कड़ी का काम करती है । वे जनकल्याण योजनाओं को लोगों तक पहुँचाती हैं ।
✳️ राजनीतिक पार्टी की जरूरत :-
🔹 लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टी एक अभिन्न अंग होती है । यदि कोई पार्टी न हो तो हर उम्मीदवार एक स्वतंत्र उम्मीदवार होगा । भारत में लोकसभा में कुल 543 सदस्य हैं । यदि हर सदस्य स्वतंत्र रूप से चुनाव जीत कर आयेगा तो स्थिति बड़ी भयावह हो जायेगी । कोई भी दो सदस्य किसी एक मुद्दे पर एक ही तरह से सोचने में असमर्थ होगा । एक सांसद हमेशा अपने चुनावी क्षेत्र के बारे में सोचेगा और राष्ट्र हित को दरकिनार कर देगा । राजनीतिक पार्टी विभिन्न सोच के राजनेताओं को एक मंच पर लाने का काम करती ताकि वे सभी मिलकर किसी भी बड़े मुद्दे पर एक जैसी सोच बना सकें ।
🔹 आज पूरे विश्व में प्रतिनिधित्व पर आधारित लोकतंत्र को अपनाया गया है । ऐसे लोकतंत्र में नागरिकों द्वारा चुने गये प्रतिनिधि सरकार चलाते हैं । यथार्थ में यह संभव नहीं है कि हर नागरिक प्रत्यक्ष रूप से सरकार चलाने में योगदान दे पाये । इसी सिस्टम ने राजनीतिक पार्टियों को जन्म दिया है ।
✳️ कितने राजनीतिक दल :-
🔹 कुछ देशों में एक ही पार्टी होती है , जबकि कुछ देशों में दो पार्टियाँ होती हैं तो कुछ देशों में अनेक पार्टियाँ होती हैं । किसी भी देश में प्रचलित पार्टी सिस्टम के कई ऐतिहासिक और सामाजिक कारण होते हैं । हर तरह के सिस्टम के अपने गुण और दोष होते हैं ।
🔹 चीन में एकल पार्टी सिस्टम है । लेकिन लोकतंत्र के दृष्टिकोण से यह सही नहीं है क्योंकि एकल पार्टी सिस्टम में लोगों के पास कोई विकल्प नहीं होता है ।
🔹 संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में दो पार्टी सिस्टम है । ऐसे सिस्टम में लोगों के पास विकल्प होता है ।
🔹 भारत में मल्टी पार्टी सिस्टम है और यहाँ कई राजनीतिक पार्टियाँ हैं । भारत के समाज में भारी विविधता है । इसलिए यहाँ मल्टी पार्टी सिस्टम विकसित हुई है । मल्टी पार्टी सिस्टम में कई खामियाँ लगती हैं । कई बार इससे राजनैतिक अस्थिरता का माहौल बन जाता है और साल दो साल में ही सरकार बदल जाती है । लेकिन भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में अलग अलग हितों और मतधारणाओं का सही प्रतिनिधित्व मल्टी पार्टी सिस्टम से ही संभव हो पाता है ।
🔹 आजादी के बाद के शुरुआती दिनों से लेकर 1977 भारत में केंद्र में केवल कांग्रेस पार्टी की सरकार बनती थी । 1977 से 1980 के बीच जनता पार्टी की सरकार बनी । उसके बाद 1980 से 1989 तक कांग्रेस की सरकार बनी । फिर दो साल के अंतराल के बाद फिर से 1991 से 1996 तक कांग्रेस की सरकार रही । फिर अगले 8 वर्षों तक गठबंधन की सरकारों का दौर चला । 2004 से लेकर 2014 तक कांग्रेस पार्टी की ऐसी सरकार रही जिसमें अन्य पार्टियों का गठबंधन था । 2014 में 18 वर्षों के लंबे अंतराल के बाद किसी पार्टी को पूर्ण बहुमत मिला और वह अपने दम पर सरकार बना पाई ।
✳️ राजनैतिक दलों में जन - भागीदारी :-
🔹 लोगों में एक आम धारणा बैठ गई है कि लोग राजनीतिक पार्टियों के प्रति उदासीन हो गये हैं । लोग राजनीतिक पार्टियों पर भरोसा नहीं करते हैं ।
🔹 जो सबूत उपलब्ध हैं वो ये बताते हैं कि यह धारणा भारत के लिये कुछ हद तक सही है । पिछले कई दशकों में किये गये सर्वे से प्राप्त सबूतों के आधार पर निम्न बातें सामने आती हैं :
🔹 पूरे दक्षिण एशिया में लोगों का विश्वास राजनीतिक पार्टियों पर से उठ गया है । सर्वे में पूछा गया कि वे राजनीतिक पार्टियों पर ' एकदम भरोसा नहीं या ' बहुत भरोसा नहीं ' या ' कुछ भरोसा ' या ' पूरा भरोसा करते हैं । ऐसे लोगों की संख्या अधिक थी जिन्होंने कहा कि वे एकदम भरोसा नहीं ' या ' बहुत भरोसा नहीं करते हैं । जिन्होंने यह कहा कि वे ' कुछ भरोसा ' या ' पूरा भरोसा ' करते हैं उनकी संख्या कम थी ।
🔹 पूरी दुनिया में लोग राजनीतिक दलों पर कम ही भरोसा करते हैं और उन्हें संदेह की दृष्टि से देखते हैं ।
🔹 लेकिन जब बात लोगों द्वारा राजनीतिक दलों के क्रियाकलापों में भाग लेने की आती है तो स्थिति अलग हो जाती है । कई विकसित देशों की तुलना में भारत में ऐसे लोगों का अनुपात अधिक है जिन्होंने माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं ।
🔹 पिछले तीन दशकों में ऐसे लोगों का प्रतिशत बढ़ा है जिन्होंने यह माना कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं । इस अवधि में ऐसे लोगों का अनुपात भी बढ़ा है जिन्हें ऐसा लगता है कि वे किसी राजनीतिक पार्टी के करीब हैं ।
✳️ राष्ट्रीय पार्टी :-
🔹 भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है । हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है । चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है । लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं । इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है , जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है । जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं ।
✴️ राज्य स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं ।
✴️ राष्ट्रीय स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है ।
👉 इस वर्गीकरण के अनुसार 2006 में देश में छ : राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं । इनका वर्णन नीचे दिया गया है ।
✴️ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस :- इसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है । यह एक बहुत पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी । भारत की आजादी में इस पार्टी की मुख्य भूमिका रही है । भारत की आजादी के बाद के कई दशकों तक कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई है । आजादी के बाद के सत्तर वर्षों में पचास से अधिक वर्षों तक इसी पार्टी की सरकार रही है ।
✴️ भारतीय जनता पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी । इस पार्टी को भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में माना जा सकता है । इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य है एक शक्तिशाली और आधुनिक भारत का निर्माण । भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है । यह पार्टी जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलयं चाहती है । यह धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना चाहती है और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है । 1990 के दशक में इस पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा । यह पार्टी पहली बार 1998 में सत्ता में आई और 2004 तक शासन किया । उसके बाद यह पार्टी 2014 में सत्ता में आई है ।
✴️ बहुजन समाज पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना कांसी राम के नेतृत्व में 1984 में हुई थी । यह पार्टी बहुजन समाज के लिये सत्ता चाहती है । बहुजन समाज में दलित , आदिवासी , ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं । इस पार्टी की पकडू उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी है और यह उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार भी बना चुकी है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी - मार्क्सवादी :- इस पार्टी की स्थापना 1964 में हुई थी । इस पार्टी की मुख्य विचारधारा मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर आधारित है । यह पार्टी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती है । इस पार्टी को पश्चिम बंगाल , केरल और त्रिपुरा में अच्छा समर्थन प्राप्त है ; खासकर से गरीबों , मिल मजदूरों , किसानों , कृषक श्रमिकों और बुद्धिजीवियों के बीच । लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इस पार्टी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है और पश्चिम बंगाल की सत्ता इसके हाथ से निकल गई है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी । इसकी नीतियाँ सीपीआई ( एम ) से मिलती जुलती हैं । 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद यह कमजोर हो गई । इस पार्टी को केरल , पश्चिम बंगाल , पंजाब , आंध्र प्रदेश और तामिलनाडु में ठीक ठाक समर्थन प्राप्त है । लेकिन इसका जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से खिसका है । 2004 के लोक सभा चुनाव में इस पार्टी को 1.4 % वोट मिले और 10 सीटें मिली थीं । शुरु में इस पार्टी ने यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था लेकिन 2008 के आखिर में इसने समर्थन वापस ले लिया ।
✴️ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी :- कांग्रेस पार्टी में फूट के परिणामस्वरूप 1999 में इस पार्टी का जन्म हुआ था । यह पार्टी लोकतंत्र , गांधीवाद , धर्मनिरपेक्षता , समानता , सामाजिक न्याय और संघीय ढाँचे की वकालत करती है । यह महाराष्ट्र में काफी शक्तिशाली है और इसको मेघालय , मणिपुर और असम में भी समर्थन प्राप्त है ।
✳️ क्षेत्रीय पार्टियों का उदय :- पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है । यह भारत में लोकतंत्र के फैलाव और उसकी गहरी होती जड़ों को दर्शाता है । कुछ क्षेत्रीय नेता अपने अपने राज्यों में काफी शक्तिशाली हैं । समाजवादी पार्टी , बीजू जनता दल , एआईडीएमके , डीएमके , आदि क्षेत्रीय पार्टी के उदाहरण हैं ।
✳️ राजनीतिक दलों के लिये चुनौतियाँ :-
🔹 आम जनता इस बात से नाराज रहती हैं कि राजनीतक दल अपना काम ठीक ढंग से नहीं करते । जनता हमेशा राजनीतिक दलों की आलोचना करती हैं । राजनीतिक दलों को अपना काम प्रभावी ढंग से चलाने के लिए कड़ी चुनौतियों का सामना करना पडता है । ये चुनौतियां हैं :-
👉 1. पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का न होना : - लोकतन्त्र का अर्थ कि कोई भी फेसला लेने से पहले कार्यकर्ताओ से परामर्श किया जाये परन्तु वास्तव मे ऐसा कुछ नहीं होता । ऊपर के कुछ नेता हि सभी फेसले ले लेते हैं।इस से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी रहती है जो दोनो पार्टी और जनता के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकती है ।
👉 2. पार्टी के बीच आंतरिक चुनाव भी नहीं होते ।
👉 3. पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते है ।
✴️ वंशवाद की चुनौती :- अधिकाश राजनीतिक दल पारदर्शी ढंग से अपना काम नहीं करते इस लिए उनके नेता इस बात का अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते है ।
✴️ पैसा और अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ :- राजनितिक दलो के सामने आने वाली तिसरी चुनौती , विशेषकर चुनाव के दिनों मे , और अपराधिक ततवो कि बढती घुसपैठ कि है । चुनाव जितने कि होड मे राजनितिक दल पैसे का अनुचित प्रयोग करके अपने दल का बहुमत सिद्ध करने का प्रयत्न करती हैं । राजनितिक दल उसी उम्मीदवार को टिकट देते हैं जिसके पास पैसा होता है , क्योंकि चुनाव में बहुत पैसा खर्च होता है । राजनितिक दल यह नहीं देखते कि वो व्यक्ति अपराधी तो नहीं है ।
✴️ पार्टियों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति :- आज के युग मे भारत मे हि नहीं वरन् विश्व - भर मे राजनितिक दलों के पास विकल्प कि कमी है । उनके पास नई - नई चिीजे पेश करनेखे लिए कुछ नहीं होता है ।
👉 राजनितिक दलों में सुधार लाने के लिये विभिन्न दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण अंतर लाना ही सार्थक विकल्प है ।
🔹 1. आजकल दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता है ।
🔹 2. हमारे देश में भी सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मामलों पर बड़ा कम अंतर रह गया है ।
🔹 3. जो लोग इससे अलग नीतियाँ चाहते है उनके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है ।
🔹 4. अच्छे नेताओं की कमी ।
✳️ राजनीतिक दलों को सुधारने के उपाय :-
🔹 हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में सुधार लाने के लिये कुछ उपाय नीचे दिये गये हैं :-
👉 दलबदल कानून :- इस कानून को राजीव गांधी की सरकार के समय पास किया गया था । इस कानून के मुताबिक यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी बदलता है तो उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो जायेगी । इस कानून से दलबदल को कम करने में काफी मदद मिली है । लेकिन इस कानून ने पार्टी में विरोध का स्वर उठाना मुश्किल कर दिया है । अब सांसद या विधायक को हर वह बात माननी पड़ती है जो पार्टी के नेता का निर्णय होता है ।
👉 नामांकण के समय संपत्ति और क्रिमिनल केस का ब्यौरा देना :- अब चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह नामांकण के समय एक शपथ पत्र दे जिसमें उसकी संपत्ति और उसपर चलने वाले क्रिमिनल केस का ब्यौरा हो । इससे जनता के पास अब उम्मीदवार के बारे में अधिक जानकारी होती है । लेकिन उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना की सत्यता जाँचने के लिये अभी कोई भी सिस्टम नहीं बना है ।
👉 अनिवार्य संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न :- चुनाव आयोग ने अब पार्टियों के लिये संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न को अनिवार्य कर दिया है । राजनीतिक पार्टियों ने इसे शुरु कर दिया है लेकिन अभी यह महज औपचारिकता के तौर पर होता है ।
🔹 भारत में निष्पक्षष्पक्ष चुनाव संपन्न कराने के लिए एक स्वतंत्र संस्था जिसका नाम चुनाव आयोग है । हर राजनीतिक पार्टी को चुनाव आयोग में रजिस्ट्रेशन करवाना होता है । चुनाव आयोग की नजर में हर पार्टी समान होती है । लेकिन बड़ी और स्थापित पार्टियों को कुछ विशेष सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं । इन पार्टियों को अलग चुनाव चिह्न दिया जाता है , जिसका इस्तेमाल उस पार्टी का अधिकृत उम्मीदवार ही कर सकता है । जिन पार्टियों को यह विशेषाधिकार मिलता है उन्हें मान्यताप्राप्त पार्टी कहते हैं ।
✴️ राज्य स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को विधान सभा के चुनाव में कुल वोट के कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो कम से कम दो सीटों पर चुनाव जीतती है उसे राज्य स्तर की पार्टी कहते हैं ।
✴️ राष्ट्रीय स्तर की पार्टी :- जिस पार्टी को लोक सभा चुनावों में या चार राज्यों के विधानसभा चुनावों में कम से कम 6 % वोट मिलते हैं और जो लोकसभा में कम से कम चार सीट जीतती है उसे राष्ट्रीय स्तर की पार्टी की मान्यता मिलती है ।
👉 इस वर्गीकरण के अनुसार 2006 में देश में छ : राष्ट्रीय पार्टियाँ थीं । इनका वर्णन नीचे दिया गया है ।
✴️ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस :- इसे कांग्रेस पार्टी के नाम से भी जाना जाता है । यह एक बहुत पुरानी पार्टी है जिसकी स्थापना 1885 में हुई थी । भारत की आजादी में इस पार्टी की मुख्य भूमिका रही है । भारत की आजादी के बाद के कई दशकों तक कांग्रेस पार्टी ने भारतीय राजनीति में प्रमुख भूमिका निभाई है । आजादी के बाद के सत्तर वर्षों में पचास से अधिक वर्षों तक इसी पार्टी की सरकार रही है ।
✴️ भारतीय जनता पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1980 में हुई थी । इस पार्टी को भारतीय जन संघ के पुनर्जन्म के रूप में माना जा सकता है । इस पार्टी का मुख्य उद्देश्य है एक शक्तिशाली और आधुनिक भारत का निर्माण । भारतीय जनता पार्टी हिंदुत्व पर आधारित राष्ट्रवाद को बढ़ावा देना चाहती है । यह पार्टी जम्मू कश्मीर का भारत में पूर्ण रूप से विलयं चाहती है । यह धर्म परिवर्तन पर रोक लगाना चाहती है और एक यूनिफॉर्म सिविल कोड लाना चाहती है । 1990 के दशक में इस पार्टी का जनाधार तेजी से बढ़ा । यह पार्टी पहली बार 1998 में सत्ता में आई और 2004 तक शासन किया । उसके बाद यह पार्टी 2014 में सत्ता में आई है ।
✴️ बहुजन समाज पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना कांसी राम के नेतृत्व में 1984 में हुई थी । यह पार्टी बहुजन समाज के लिये सत्ता चाहती है । बहुजन समाज में दलित , आदिवासी , ओबीसी और अल्पसंख्यक समुदाय के लोग आते हैं । इस पार्टी की पकडू उत्तर प्रदेश में बहुत अच्छी है और यह उत्तर प्रदेश में दो बार सरकार भी बना चुकी है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी - मार्क्सवादी :- इस पार्टी की स्थापना 1964 में हुई थी । इस पार्टी की मुख्य विचारधारा मार्क्स और लेनिन के सिद्धांतों पर आधारित है । यह पार्टी समाजवाद और धर्मनिरपेक्षता का समर्थन करती है । इस पार्टी को पश्चिम बंगाल , केरल और त्रिपुरा में अच्छा समर्थन प्राप्त है ; खासकर से गरीबों , मिल मजदूरों , किसानों , कृषक श्रमिकों और बुद्धिजीवियों के बीच । लेकिन हाल के कुछ वर्षों में इस पार्टी की लोकप्रियता में तेजी से गिरावट आई है और पश्चिम बंगाल की सत्ता इसके हाथ से निकल गई है ।
✴️ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी :- इस पार्टी की स्थापना 1925 में हुई थी । इसकी नीतियाँ सीपीआई ( एम ) से मिलती जुलती हैं । 1964 में पार्टी के विभाजन के बाद यह कमजोर हो गई । इस पार्टी को केरल , पश्चिम बंगाल , पंजाब , आंध्र प्रदेश और तामिलनाडु में ठीक ठाक समर्थन प्राप्त है । लेकिन इसका जनाधार पिछले कुछ वर्षों में तेजी से खिसका है । 2004 के लोक सभा चुनाव में इस पार्टी को 1.4 % वोट मिले और 10 सीटें मिली थीं । शुरु में इस पार्टी ने यूपीए सरकार का बाहर से समर्थन किया था लेकिन 2008 के आखिर में इसने समर्थन वापस ले लिया ।
✴️ राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी :- कांग्रेस पार्टी में फूट के परिणामस्वरूप 1999 में इस पार्टी का जन्म हुआ था । यह पार्टी लोकतंत्र , गांधीवाद , धर्मनिरपेक्षता , समानता , सामाजिक न्याय और संघीय ढाँचे की वकालत करती है । यह महाराष्ट्र में काफी शक्तिशाली है और इसको मेघालय , मणिपुर और असम में भी समर्थन प्राप्त है ।
✳️ क्षेत्रीय पार्टियों का उदय :- पिछले तीन दशकों में कई क्षेत्रीय पार्टियों का महत्व बढ़ा है । यह भारत में लोकतंत्र के फैलाव और उसकी गहरी होती जड़ों को दर्शाता है । कुछ क्षेत्रीय नेता अपने अपने राज्यों में काफी शक्तिशाली हैं । समाजवादी पार्टी , बीजू जनता दल , एआईडीएमके , डीएमके , आदि क्षेत्रीय पार्टी के उदाहरण हैं ।
✳️ राजनीतिक दलों के लिये चुनौतियाँ :-
🔹 आम जनता इस बात से नाराज रहती हैं कि राजनीतक दल अपना काम ठीक ढंग से नहीं करते । जनता हमेशा राजनीतिक दलों की आलोचना करती हैं । राजनीतिक दलों को अपना काम प्रभावी ढंग से चलाने के लिए कड़ी चुनौतियों का सामना करना पडता है । ये चुनौतियां हैं :-
👉 1. पार्टी के भीतर आंतरिक लोकतंत्र का न होना : - लोकतन्त्र का अर्थ कि कोई भी फेसला लेने से पहले कार्यकर्ताओ से परामर्श किया जाये परन्तु वास्तव मे ऐसा कुछ नहीं होता । ऊपर के कुछ नेता हि सभी फेसले ले लेते हैं।इस से कार्यकर्ताओं में नाराजगी बनी रहती है जो दोनो पार्टी और जनता के लिये हानिकारक सिद्ध हो सकती है ।
👉 2. पार्टी के बीच आंतरिक चुनाव भी नहीं होते ।
👉 3. पार्टी के नाम पर सारे फैसले लेने का अधिकार उस पार्टी के नेता हथिया लेते है ।
✴️ वंशवाद की चुनौती :- अधिकाश राजनीतिक दल पारदर्शी ढंग से अपना काम नहीं करते इस लिए उनके नेता इस बात का अनुचित लाभ लेते हुए अपने नजदीकी लोगों और यहाँ तक कि अपने ही परिवार के लोगों को आगे बढ़ाते है ।
✴️ पैसा और अपराधी तत्वों की बढ़ती घुसपैठ :- राजनितिक दलो के सामने आने वाली तिसरी चुनौती , विशेषकर चुनाव के दिनों मे , और अपराधिक ततवो कि बढती घुसपैठ कि है । चुनाव जितने कि होड मे राजनितिक दल पैसे का अनुचित प्रयोग करके अपने दल का बहुमत सिद्ध करने का प्रयत्न करती हैं । राजनितिक दल उसी उम्मीदवार को टिकट देते हैं जिसके पास पैसा होता है , क्योंकि चुनाव में बहुत पैसा खर्च होता है । राजनितिक दल यह नहीं देखते कि वो व्यक्ति अपराधी तो नहीं है ।
✴️ पार्टियों के बीच विकल्पहीनता की स्थिति :- आज के युग मे भारत मे हि नहीं वरन् विश्व - भर मे राजनितिक दलों के पास विकल्प कि कमी है । उनके पास नई - नई चिीजे पेश करनेखे लिए कुछ नहीं होता है ।
👉 राजनितिक दलों में सुधार लाने के लिये विभिन्न दलों की नीतियों और कार्यक्रमों में महत्वपूर्ण अंतर लाना ही सार्थक विकल्प है ।
🔹 1. आजकल दलों के बीच वैचारिक अंतर कम होता है ।
🔹 2. हमारे देश में भी सभी बड़ी पार्टियों के बीच आर्थिक मामलों पर बड़ा कम अंतर रह गया है ।
🔹 3. जो लोग इससे अलग नीतियाँ चाहते है उनके लिए कोई विकल्प उपलब्ध नहीं है ।
🔹 4. अच्छे नेताओं की कमी ।
✳️ राजनीतिक दलों को सुधारने के उपाय :-
🔹 हमारे देश की राजनीतिक पार्टियों और नेताओं में सुधार लाने के लिये कुछ उपाय नीचे दिये गये हैं :-
👉 दलबदल कानून :- इस कानून को राजीव गांधी की सरकार के समय पास किया गया था । इस कानून के मुताबिक यदि कोई विधायक या सांसद पार्टी बदलता है तो उसकी विधानसभा या संसद की सदस्यता समाप्त हो जायेगी । इस कानून से दलबदल को कम करने में काफी मदद मिली है । लेकिन इस कानून ने पार्टी में विरोध का स्वर उठाना मुश्किल कर दिया है । अब सांसद या विधायक को हर वह बात माननी पड़ती है जो पार्टी के नेता का निर्णय होता है ।
👉 नामांकण के समय संपत्ति और क्रिमिनल केस का ब्यौरा देना :- अब चुनाव लड़ने वाले हर उम्मीदवार के लिये यह अनिवार्य हो गया है कि वह नामांकण के समय एक शपथ पत्र दे जिसमें उसकी संपत्ति और उसपर चलने वाले क्रिमिनल केस का ब्यौरा हो । इससे जनता के पास अब उम्मीदवार के बारे में अधिक जानकारी होती है । लेकिन उम्मीदवार द्वारा दी गई सूचना की सत्यता जाँचने के लिये अभी कोई भी सिस्टम नहीं बना है ।
👉 अनिवार्य संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न :- चुनाव आयोग ने अब पार्टियों के लिये संगठन चुनाव और टैक्स रिटर्न को अनिवार्य कर दिया है । राजनीतिक पार्टियों ने इसे शुरु कर दिया है लेकिन अभी यह महज औपचारिकता के तौर पर होता है ।