10 Class social science Civics Notes in hindi chapter 2 Federalism अध्याय - 2 संघवाद
CBSE Revision Notes for CBSE Class 10 Social Science POL Federalism POL Federalism:a How has federal division of power in India helped national unity? To what extent has decentralisation achievedthis objective? How does democracy accommodate different social groups?
Class 10th social science Civics chapter 2 Federalism Notes in Hindi
📚 अध्याय - 2 📚
👉 संघवाद 👈
✳️ संघवाद :-
🔹 संघवाद से अभिप्राय है कि एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें देश की सर्वोच्च सत्ता केंद्र सरकार और उसके विभिन्न आनुषागिक सादिक इकाइयों राज्य सरकारों के बीच बंटी होती है ।
✳️ संघीय व्यवस्था की विशेषता है :-
🔹 संवाद या संघीय शासन व व्यवस्था है जिसमें देश की सरोज सत्ता केंद्र सरकार और उसके विभिन्न अनुषांगिक इकाइयों के बीच में बंट जाती है ।
✳️ संघीय व्यवस्था या संवाद की महत्वपूर्ण विशेषताएँ :-
👉 संघीय व्यवस्था या संघवाद की कुछ महत्वपूर्ण विशेषता है निम्नलिखित हैं :-
🔹 सघ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है ।
🔹 अलग - अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने , कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना - अपना अधिकार क्षेत्र होता है ।
🔹 विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं ।
🔹 संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती ।
🔹 अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है ।
🔹 केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच सत्ता का बँटवारा हर संघीय सरकार में अलग - अलग किस्म का होता है ।
🔹 पहला तरीका है दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करने का ।
🔹 संघीय शासन व्यवस्था के गठन का दूसरा तरीका है बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना ।
✳️ भारतीय गणराज्य :-
🔹 हालांकि भारत के संविधान में ' गणराज्य ' शब्द का उल्लेख नहीं है , लेकिन भारतीय राष्ट्र का निर्माण संघीय व्यवस्था पर हुआ था ।
🔹 भारत के संविधान में मूल रूप से दो स्तर के शासन तंत्र का प्रावधान रखा गया था । एक स्तर पर केंद्रीय सरकार होती है जो भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करती है । दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें होती हैं जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं । बाद में इस व्यवस्था में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया , जो पंचायत और नगरपालिका के रूप में है ।
✳️ संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण :-
🔹 इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं ।
🔹 शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है । हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है ।
🔹 संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है । हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है ।
🔹 संविधान के मूलभूत प्रावधानों को बदलना सरकार के किसी भी स्तर द्वारा अकेले संभव नहीं होता है । यदि ऐसे किसी बदलाव की जरूरत होती है तो इसके लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता पड़ती है ।
🔹 न्यायालय का यह अधिकार होता है कि वह संविधान का अर्थ निकाले और सरकार के विभिन्न स्तरों के कार्यों का व्याख्यान करे । जब कभी सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अधिकारों को लेकर कोई मतभेद होता है तो ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का काम किसी अम्पायर की तरह होता है ।
🔹 सरकार के हर स्तर के लिए वित्त के स्रोत का स्पष्ट विवरण दिया गया है । इससे विभिन्न स्तर के सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित होती है । संघीय ढाँचे के दो उद्देश्य होते हैं ।
👉 पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना ।
👉 दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना ।
🔹 किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं , पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति । ये दोनों पहलू संघीय व्यवस्था के गठन और कामकाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं ।
🔹 सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता की साझेदारी के नियमों पर सहमति होना जरूरी होता है । विभिन्न स्तरों में परस्पर यह विश्वास भी होना चाहिए के वे अपने अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्रों में दखलंदाजी नहीं करेंगे ।
✳️ सत्ता का संतुलन :-
🔹 अलग अलग संघीय ढाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं । यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था ।
✳️ संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं :-
✴️ सबको साथ लाकर संघ बनाना :- इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत : एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं । ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें । इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं , संयुक्त राज्य अमेरिका , स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ।
✴️ सबको जोड़कर संघ बनाना :- इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है । इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है । हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो । उदाहरण के लिए ; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं : भारत , स्पेन , बेल्जियम , आदि ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था :-
🔹 भारतीय संविधान ने यहां की सरकार को एक संघात्मक रूप प्रदान किया है । यहाँ विकेंद्रीकरण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं ।
🔹 संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था । संघ सरकार और राज्य सरकारें । केन्द्र सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था । बाद में पंचायत और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया ।
🔹 भारतीय संविधान लिखित एवं कठोर है एवं राज्यों के मध्य शक्ति के विभाजन स्पष्ट रूप से लिखे हैं ।
🔹 भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका अथवा सर्वोच्च न्यायपालिका की स्थापना की गई है ताकि केन्द्र एवं राज्यों अच्छा दो या दो से अधिक राज्यों के बीच उठने वाले विवादों को आसानी से निपटाया जा सके ।
🔹 भारत में संघीय शासन व्यवस्थाओं के अपने अलग - अलग अधिकार क्षेत्र है ।
✳️ विषयों की सूची :-
✳️ संघ सूची :- इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं । कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है , इसलिए उन्हें संघ सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है । संघ सूची के कुछ विषय हैं ; देश की सुरक्षा , विदेश नीति , बैंकिंग , सूचना प्रसारण और मुद्रा ।
✳️ राज्य सूची :- जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें राज्य सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है । उदाहरण ; पुलिस , व्यापार , वाणिज्य , कृषि और सिंचाई ।
✳️ समवर्ती सूची :- इस सूची को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं । वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं , इस सूची में आते हैं । समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है । यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है । उदाहरण ; शिक्षा , वन , ट्रेड यूनियन , विवाह , दत्तक अभिग्रहण , उत्तराधिकार , आदि ।
✳️ बची हुई लिस्ट :- वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है ।
✳️ विशेष दर्जा :- जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है । इस राज्य का अपना अलग संविधान है । भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले । यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है । कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र शासित प्रदेश :- भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है । कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है । इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है । इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं । ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं । उदाहरण ; दिल्ली , चंडीगढ़ , अंडमान निकोबार , आदि ।
✴️ भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है । इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है । अकेले संसद् द्वारा यह संभव नहीं है । इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा । उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण :-
✳️ भाषायी राज्य : भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं । इसके अलावा यहाँ भौगोलिक , जातीय , सांस्कृतिक , आदि विविधताएँ भी हैं । कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें । उदाहरण ; तामिल नाडु , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , महाराष्ट्र , आदि । कुछ राज्यों का गठन भूगोल , जातीयता , संस्कृति आदि के आधार पर हुआ । उदाहरण ; नागालैंड , उत्तराखंड , झारखंड , आदि ।
✳️ भाषा नीति : भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है । हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है । लेकिन हिंदी केवल 40 % लोगों की मातृभाषा है । इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है । इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये । हिंदी के अलावा , 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र और राज्य के रिश्ते : केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है ।
✳️ कांग्रेस की मोनोपॉली के समय :-
🔹 आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी । यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था । उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी । छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था ।
✳️ गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति :-
🔹 1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ । उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ । इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी । इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला ।
✳️ भारत में भाषायी विविधता :-
🔹 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग - अलग भाषाएँ हैं । इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है । उदाहरण के लिये भोजपुरी , मगधी , बुंदेलखंडी , छत्तीसगढ़ी , राजस्थानी , भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है । विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं । इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है । अन्य भाषाओं को अ - अनुसूचित भाषा कहा जाता है । इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है ।
✳️ भारत में विकेंद्रीकरण :-
🔹 भारत एक विशाल देश है , जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है । भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं । जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है । इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली , खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है ।
🔹 कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है । स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है । इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई ।
🔹 1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया । संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके । स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
🔹 अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है ।
🔹 इन निकायों में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं ।
🔹 सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है ।
🔹 पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया है ।
✳️ पंचायती राज :-
🔹 राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा । यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग - अलग हो सकता है । ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं ।
🔹 हर गाँव ( कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह ) में एक ग्राम पंचायत होती है । यह कई वार्ड सदस्य ( पंच ) का एक समूह होता है । पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं ।
🔹 पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है । स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है ।
✴️ पंचायत समिति : कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है । इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है ।
✴️ जिला परिषद : एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं । जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं । उस जिले के लोक सभा के सदस्य , विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं । जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है ।
✴️ नगरपालिका : इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है । शहरों में नगरपालिका का गठन होता है । बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है । इनके सदस्य ( वार्ड काउंसिलर ) लोगों द्वारा चुने जाते हैं । फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं । म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है ।
✳️ संघवाद :-
🔹 संघवाद से अभिप्राय है कि एक ऐसी शासन व्यवस्था जिसमें देश की सर्वोच्च सत्ता केंद्र सरकार और उसके विभिन्न आनुषागिक सादिक इकाइयों राज्य सरकारों के बीच बंटी होती है ।
✳️ संघीय व्यवस्था की विशेषता है :-
🔹 संवाद या संघीय शासन व व्यवस्था है जिसमें देश की सरोज सत्ता केंद्र सरकार और उसके विभिन्न अनुषांगिक इकाइयों के बीच में बंट जाती है ।
✳️ संघीय व्यवस्था या संवाद की महत्वपूर्ण विशेषताएँ :-
👉 संघीय व्यवस्था या संघवाद की कुछ महत्वपूर्ण विशेषता है निम्नलिखित हैं :-
🔹 सघ सरकार दो या अधिक स्तरों वाली होती है ।
🔹 अलग - अलग स्तर की सरकारें एक ही नागरिक समूह पर शासन करती हैं पर कानून बनाने , कर वसूलने और प्रशासन का उनका अपना - अपना अधिकार क्षेत्र होता है ।
🔹 विभिन्न स्तरों की सरकारों के अधिकार क्षेत्र संविधान में स्पष्ट रूप से वर्णित होते हैं ।
🔹 संविधान के मौलिक प्रावधानों को किसी एक स्तर की सरकार अकेले नहीं बदल सकती ।
🔹 अदालतों को संविधान और विभिन्न स्तर की सरकारों के अधिकारों की व्याख्या करने का अधिकार है ।
🔹 केन्द्र और विभिन्न राज्य सरकारों के बीच सत्ता का बँटवारा हर संघीय सरकार में अलग - अलग किस्म का होता है ।
🔹 पहला तरीका है दो या अधिक स्वतंत्र राष्ट्रों को साथ लाकर एक बड़ी इकाई गठित करने का ।
🔹 संघीय शासन व्यवस्था के गठन का दूसरा तरीका है बड़े देश द्वारा अपनी आंतरिक विविधता को ध्यान में रखते हुए राज्यों का गठन करना और फिर राज्य और राष्ट्रीय सरकार के बीच सत्ता का बँटवारा कर देना ।
✳️ भारतीय गणराज्य :-
🔹 हालांकि भारत के संविधान में ' गणराज्य ' शब्द का उल्लेख नहीं है , लेकिन भारतीय राष्ट्र का निर्माण संघीय व्यवस्था पर हुआ था ।
🔹 भारत के संविधान में मूल रूप से दो स्तर के शासन तंत्र का प्रावधान रखा गया था । एक स्तर पर केंद्रीय सरकार होती है जो भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करती है । दूसरे स्तर पर राज्य सरकारें होती हैं जो राज्यों का प्रतिनिधित्व करती हैं । बाद में इस व्यवस्था में एक तीसरे स्तर को जोड़ा गया , जो पंचायत और नगरपालिका के रूप में है ।
✳️ संघीय व्यवस्था के मुख्य लक्षण :-
🔹 इस प्रकार की शासन व्यवस्था में दो या दो से अधिक स्तर होते हैं ।
🔹 शासन के विभिन्न स्तरों द्वारा नागरिकों के एक ही समूह पर शासन किया जाता है । हर स्तर का अधिकार क्षेत्र अलग होता है ।
🔹 संविधान में सरकार के विभिन्न स्तरों के अधिकार क्षेत्रों के बारे में साफ साफ उल्लेख किया गया है । हर स्तर की सरकार का अस्तित्व और अधिकार क्षेत्र को संविधान से गारंटी मिली होती है ।
🔹 संविधान के मूलभूत प्रावधानों को बदलना सरकार के किसी भी स्तर द्वारा अकेले संभव नहीं होता है । यदि ऐसे किसी बदलाव की जरूरत होती है तो इसके लिए सरकार के दोनों स्तरों की सहमति की आवश्यकता पड़ती है ।
🔹 न्यायालय का यह अधिकार होता है कि वह संविधान का अर्थ निकाले और सरकार के विभिन्न स्तरों के कार्यों का व्याख्यान करे । जब कभी सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच अधिकारों को लेकर कोई मतभेद होता है तो ऐसी स्थिति में सर्वोच्च न्यायालय का काम किसी अम्पायर की तरह होता है ।
🔹 सरकार के हर स्तर के लिए वित्त के स्रोत का स्पष्ट विवरण दिया गया है । इससे विभिन्न स्तर के सरकारों की वित्तीय स्वायत्तता सुनिश्चित होती है । संघीय ढाँचे के दो उद्देश्य होते हैं ।
👉 पहला उद्देश्य है देश की एकता को बल देना ।
👉 दूसरा उद्देश्य है क्षेत्रीय विविधता को सम्मान देना ।
🔹 किसी भी आदर्श संघीय व्यवस्था के दो पहलू होते हैं , पारस्परिक विश्वास और साथ रहने पर सहमति । ये दोनों पहलू संघीय व्यवस्था के गठन और कामकाज के लिए महत्वपूर्ण होते हैं ।
🔹 सरकार के विभिन्न स्तरों के बीच सत्ता की साझेदारी के नियमों पर सहमति होना जरूरी होता है । विभिन्न स्तरों में परस्पर यह विश्वास भी होना चाहिए के वे अपने अपने अधिकार क्षेत्रों को मानेंगे और एक दूसरे के अधिकार क्षेत्रों में दखलंदाजी नहीं करेंगे ।
✳️ सत्ता का संतुलन :-
🔹 अलग अलग संघीय ढाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं । यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था ।
✳️ संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं :-
✴️ सबको साथ लाकर संघ बनाना :- इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत : एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं । ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें । इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं , संयुक्त राज्य अमेरिका , स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ।
✴️ सबको जोड़कर संघ बनाना :- इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है । इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है । हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो । उदाहरण के लिए ; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं : भारत , स्पेन , बेल्जियम , आदि ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था :-
🔹 भारतीय संविधान ने यहां की सरकार को एक संघात्मक रूप प्रदान किया है । यहाँ विकेंद्रीकरण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं ।
🔹 संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था । संघ सरकार और राज्य सरकारें । केन्द्र सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था । बाद में पंचायत और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया ।
🔹 भारतीय संविधान लिखित एवं कठोर है एवं राज्यों के मध्य शक्ति के विभाजन स्पष्ट रूप से लिखे हैं ।
🔹 भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका अथवा सर्वोच्च न्यायपालिका की स्थापना की गई है ताकि केन्द्र एवं राज्यों अच्छा दो या दो से अधिक राज्यों के बीच उठने वाले विवादों को आसानी से निपटाया जा सके ।
🔹 भारत में संघीय शासन व्यवस्थाओं के अपने अलग - अलग अधिकार क्षेत्र है ।
✳️ विषयों की सूची :-
✳️ संघ सूची :- इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं । कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है , इसलिए उन्हें संघ सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है । संघ सूची के कुछ विषय हैं ; देश की सुरक्षा , विदेश नीति , बैंकिंग , सूचना प्रसारण और मुद्रा ।
✳️ राज्य सूची :- जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें राज्य सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है । उदाहरण ; पुलिस , व्यापार , वाणिज्य , कृषि और सिंचाई ।
✳️ समवर्ती सूची :- इस सूची को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं । वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं , इस सूची में आते हैं । समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है । यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है । उदाहरण ; शिक्षा , वन , ट्रेड यूनियन , विवाह , दत्तक अभिग्रहण , उत्तराधिकार , आदि ।
✳️ बची हुई लिस्ट :- वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है ।
✳️ विशेष दर्जा :- जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है । इस राज्य का अपना अलग संविधान है । भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले । यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है । कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र शासित प्रदेश :- भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है । कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है । इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है । इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं । ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं । उदाहरण ; दिल्ली , चंडीगढ़ , अंडमान निकोबार , आदि ।
✴️ भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है । इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है । अकेले संसद् द्वारा यह संभव नहीं है । इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा । उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण :-
✳️ भाषायी राज्य : भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं । इसके अलावा यहाँ भौगोलिक , जातीय , सांस्कृतिक , आदि विविधताएँ भी हैं । कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें । उदाहरण ; तामिल नाडु , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , महाराष्ट्र , आदि । कुछ राज्यों का गठन भूगोल , जातीयता , संस्कृति आदि के आधार पर हुआ । उदाहरण ; नागालैंड , उत्तराखंड , झारखंड , आदि ।
✳️ भाषा नीति : भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है । हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है । लेकिन हिंदी केवल 40 % लोगों की मातृभाषा है । इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है । इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये । हिंदी के अलावा , 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र और राज्य के रिश्ते : केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है ।
✳️ कांग्रेस की मोनोपॉली के समय :-
🔹 आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी । यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था । उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी । छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था ।
✳️ गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति :-
🔹 1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ । उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ । इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी । इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला ।
✳️ भारत में भाषायी विविधता :-
🔹 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग - अलग भाषाएँ हैं । इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है । उदाहरण के लिये भोजपुरी , मगधी , बुंदेलखंडी , छत्तीसगढ़ी , राजस्थानी , भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है । विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं । इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है । अन्य भाषाओं को अ - अनुसूचित भाषा कहा जाता है । इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है ।
✳️ भारत में विकेंद्रीकरण :-
🔹 भारत एक विशाल देश है , जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है । भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं । जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है । इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली , खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है ।
🔹 कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है । स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है । इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई ।
🔹 1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया । संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके । स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
🔹 अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है ।
🔹 इन निकायों में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं ।
🔹 सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है ।
🔹 पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया है ।
✳️ पंचायती राज :-
🔹 राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा । यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग - अलग हो सकता है । ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं ।
🔹 हर गाँव ( कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह ) में एक ग्राम पंचायत होती है । यह कई वार्ड सदस्य ( पंच ) का एक समूह होता है । पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं ।
🔹 पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है । स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है ।
✴️ पंचायत समिति : कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है । इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है ।
✴️ जिला परिषद : एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं । जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं । उस जिले के लोक सभा के सदस्य , विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं । जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है ।
✴️ नगरपालिका : इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है । शहरों में नगरपालिका का गठन होता है । बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है । इनके सदस्य ( वार्ड काउंसिलर ) लोगों द्वारा चुने जाते हैं । फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं । म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है ।
✳️ सत्ता का संतुलन :-
🔹 अलग अलग संघीय ढाँचे में केंद्र और राज्य सरकारों के बीच सत्ता के संतुलन अलग अलग प्रकार के होते हैं । यह संतुलन उस ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य पर निर्भर करता है जिसपर उस संघ का निर्माण हुआ था ।
✳️ संघों के निर्माण के दो तरीके हैं जो निम्नलिखित हैं :-
✴️ सबको साथ लाकर संघ बनाना :- इस प्रकार की व्यवस्था में स्वतंत्र राज्य स्वत : एक दूसरे से मिलकर एक संघ का निर्माण करते हैं । ऐसा इसलिए किया जाता है कि वैसे राज्य अपनी स्वायत्तता बनाये रखने के साथ साथ अपनी सुरक्षा बढ़ा सकें । इस प्रकार की व्यवस्था में केंद्र की तुलना में राज्यों के पास अधिक शक्ति होती है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं , संयुक्त राज्य अमेरिका , स्विट्जरलैंड और ऑस्ट्रेलिया ।
✴️ सबको जोड़कर संघ बनाना :- इस प्रकार की संघीय व्यवस्था में एक बहुत बड़ी विविधता वाले क्षेत्रों को एक साथ रखने के लिए सत्ता की साझेदारी होती है । इस प्रकार की व्यवस्था में राज्यों की तुलना में केंद्र अधिक शक्तिशाली होता है । हो सकता है कुछ इकाइयों को अन्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई हो । उदाहरण के लिए ; भारत में जम्मू कश्मीर को अन्य राज्यों के मुकाबले अधिक शक्ति मिली हुई है । इस प्रकार की संघीय व्यवस्था के उदाहरण हैं : भारत , स्पेन , बेल्जियम , आदि ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था :-
🔹 भारतीय संविधान ने यहां की सरकार को एक संघात्मक रूप प्रदान किया है । यहाँ विकेंद्रीकरण के लिए अनेक कदम उठाए गए हैं ।
🔹 संविधान ने मौलिक रूप से दो स्तरीय शासन व्यवस्था का प्रावधान किया था । संघ सरकार और राज्य सरकारें । केन्द्र सरकार को पूरे भारतीय संघ का प्रतिनिधित्व करना था । बाद में पंचायत और नगरपालिकाओं के रूप में संघीय शासन का एक तीसरा स्तर भी जोड़ा गया ।
🔹 भारतीय संविधान लिखित एवं कठोर है एवं राज्यों के मध्य शक्ति के विभाजन स्पष्ट रूप से लिखे हैं ।
🔹 भारत में एक स्वतंत्र न्यायपालिका अथवा सर्वोच्च न्यायपालिका की स्थापना की गई है ताकि केन्द्र एवं राज्यों अच्छा दो या दो से अधिक राज्यों के बीच उठने वाले विवादों को आसानी से निपटाया जा सके ।
🔹 भारत में संघीय शासन व्यवस्थाओं के अपने अलग - अलग अधिकार क्षेत्र है ।
✳️ विषयों की सूची :-
✳️ संघ सूची :- इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के विषय आते हैं । कुछ विषयों पर पूरे देश में एक जैसी नीति की जरूरत होती है , इसलिए उन्हें संघ सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है । संघ सूची के कुछ विषय हैं ; देश की सुरक्षा , विदेश नीति , बैंकिंग , सूचना प्रसारण और मुद्रा ।
✳️ राज्य सूची :- जो विषय स्थानीय महत्व के होते हैं उन्हें राज्य सूची में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य के पास होता है । उदाहरण ; पुलिस , व्यापार , वाणिज्य , कृषि और सिंचाई ।
✳️ समवर्ती सूची :- इस सूची को कॉनकरेंट लिस्ट भी कहते हैं । वैसे विषय जो साझा महत्व के होते हैं , इस सूची में आते हैं । समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केंद्र और राज्य दोनों के पास होता है । यदि केंद्र और राज्य द्वारा बनाये गये नियमों में टकराव की स्थिति होती है तो केंद्र सरकार द्वारा बनाया गया कानून ही मान्य होता है । उदाहरण ; शिक्षा , वन , ट्रेड यूनियन , विवाह , दत्तक अभिग्रहण , उत्तराधिकार , आदि ।
✳️ बची हुई लिस्ट :- वैसे विषय जो ऊपर दी गई किसी भी लिस्ट में न हो तो उन्हें बचे हुए विषयों की लिस्ट में रखा जाता है । ऐसे विषयों पर कानून बनाने का अधिकार केवल केंद्र सरकार के पास होता है ।
✳️ विशेष दर्जा :- जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है । इस राज्य का अपना अलग संविधान है । भारत के संविधान के कई प्रावधान इस राज्य में तब तक लागू नहीं किये जा सकते जब तक कि उन्हें राज्य की विधान सभा की अनुमति न मिले । यदि कोई भारतीय इस राज्य का स्थाई नागरिक नहीं है तो वह इस राज्य में जमीन या मकान नहीं खरीद सकता है । कुछ अन्य राज्यों को भी विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र शासित प्रदेश :- भारतीय गणराज्य की कुछ इकाइयों का क्षेत्रफल इतना कम है कि उन्हें एक राज्य का दर्जा नहीं दिया जा सकता है । कुछ अन्य कारणों से इन्हें किसी अन्य राज्य में मिलाया भी नहीं जा सकता है । इन इकाइयों के पास बहुत ही कम शक्ति होती है । इन्हें केंद्र शाषित प्रदेश कहते हैं । ऐसे क्षेत्रों के प्रशासन के लिए केंद्र सरकार के पास विशेष अधिकार होते हैं । उदाहरण ; दिल्ली , चंडीगढ़ , अंडमान निकोबार , आदि ।
✴️ भारत में सत्ता की साझेदारी की यह प्रणाली हमारे संविधान की मूलभूत संरचना में है । इस प्रणाली को बदलना बहुत कठिन है । अकेले संसद् द्वारा यह संभव नहीं है । इस प्रणाली में कोई भी बदलाव लाने के लिए पहले तो उसे संसद के दोनों सदनों से दो तिहाई बहुमत से पास कराना होगा । उसके बाद कम से कम आधे राज्यों की विधान सभाओं से सहमति लेनी होगी ।
✳️ भारत में संघीय व्यवस्था की सफलता के कारण :-
✳️ भाषायी राज्य : भारत एक विशाल देश है जहाँ अनेक भाषाएँ बोली जाती हैं । इसके अलावा यहाँ भौगोलिक , जातीय , सांस्कृतिक , आदि विविधताएँ भी हैं । कुछ राज्यों का गठन भाषा के आधार पर किया गया ताकि एक ही भाषा बोलने वाले लोग एक ही राज्य में रह सकें । उदाहरण ; तामिल नाडु , पश्चिम बंगाल , उड़ीसा , महाराष्ट्र , आदि । कुछ राज्यों का गठन भूगोल , जातीयता , संस्कृति आदि के आधार पर हुआ । उदाहरण ; नागालैंड , उत्तराखंड , झारखंड , आदि ।
✳️ भाषा नीति : भारत के संविधान में किसी भी भाषा को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिया गया है । हिंदी को आधिकारिक भाषा की मान्यता दी गई है । लेकिन हिंदी केवल 40 % लोगों की मातृभाषा है । इसलिए दूसरी भाषाओं की रक्षा करना अनिवार्य हो जाता है । इसके लिए कई प्रावधान बनाये गये । हिंदी के अलावा , 21 अन्य भाषाओं को अनुसूचित भाषा का दर्जा दिया गया है ।
✳️ केंद्र और राज्य के रिश्ते : केंद्र और राज्य के बीच के रिश्तों के पुनर्गठन से हमारी संघीय व्यवस्था को और बल मिला है ।
✳️ कांग्रेस की मोनोपॉली के समय :-
🔹 आजादी के बाद एक लंबे समय तक भारत के अधिकांश हिस्सों में केंद्र और राज्य में एक ही पार्टी की सरकार हुआ करती थी । यह कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर था । उस दौर में ऐसा अक्सर होता था जब केंद्र सरकार द्वारा राज्य सरकार के अधिकारों की अवहेलना की जाती थी । छोटी से छोटी बात पर किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता था ।
✳️ गठबंधन सरकार के दौर की स्थिति :-
🔹 1989 के बाद कांग्रेस की मोनोपॉली का दौर समाप्त हुआ । उसके बाद केंद्र में गठबंधन सरकार का दौर शुरु हुआ । इससे राज्य सरकार की स्वायत्तता को अधिक सम्मान मिलने लगा और सत्ता में साझेदारी भी बढ़ी । इससे भारत में संघीय व्यवस्था को और अधिक बल मिला ।
✳️ भारत में भाषायी विविधता :-
🔹 1991 की जनगणना के अनुसार भारत में 1500 अलग - अलग भाषाएँ हैं । इन भाषाओं को कुछ मुख्य भाषाओं के समूह में रखा गया है । उदाहरण के लिये भोजपुरी , मगधी , बुंदेलखंडी , छत्तीसगढ़ी , राजस्थानी , भीली और कई अन्य भाषाओं को हिंदी के समूह में रखा गया है । विभिन्न भाषाओं के समूह बनाने के बाद भी भारत में 114 मुख्य भाषाएँ हैं । इनमें से 22 भाषाओं को संविधान के आठवें अनुच्छेद में अनुसूचित भाषाओं की लिस्ट में रखा गया है । अन्य भाषाओं को अ - अनुसूचित भाषा कहा जाता है । इस तरह से भाषाओं के मामले में भारत दुनिया का सबसे विविध देश है ।
✳️ भारत में विकेंद्रीकरण :-
🔹 भारत एक विशाल देश है , जहाँ दो स्तरों वाली सरकार से काम चलाना बहुत मुश्किल काम है । भारत के कुछ राज्य तो यूरोप के कई देशों से भी बड़े हैं । जनसंख्या के मामले में उत्तर प्रदेश तो रूस से भी बड़ा है । इस राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में बोली , खानपान और संस्कृति की विविधता देखने को मिलती है ।
🔹 कई स्थानीय मुद्दे ऐसे होते हैं जिनका निपटारा स्थानीय स्तर पर ही क्या जा सकता है । स्थानीय सरकार के माध्यम से सरकारी तंत्र में लोगों की सीधी भागीदारी सुनिश्चित होती है । इसलिए भारत में सरकार के एक तीसरे स्तर को बनाने की जरूरत महसूस हुई ।
🔹 1992 में विकेंद्रीकरण की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया । संविधान में संशोधन किया गया ताकि लोकतंत्र के तीसरे स्तर को अधिक कुशल और शक्तिशाली बनाया जा सके । स्थानीय स्वशासी निकायों को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया गया ।
🔹 अब स्थानीय निकायों के नियमित चुनाव करवाना संवैधानिक रूप से अनिवार्य हो गया है ।
🔹 इन निकायों में अनुसूचित जाति , अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के लिये सदस्यों और पदाधिकारियों के सीट रिजर्व होते हैं ।
🔹 सभी सीटों का कम से कम एक तिहाई महिलाओं के लिये आरक्षित होता है ।
🔹 पंचायत और म्यूनिसिपल के चुनावों को सुचारु रूप से करवाने के लिये हर राज्य में एक स्वतंत्र राज्य चुनाव आयोग का गठन किया गया है ।
✳️ पंचायती राज :-
🔹 राज्य सरकारों को अपने राजस्व में से कुछ हिस्सा इन स्थानीय निकायों को देना होगा । यह हिस्सा अलग अलग राज्यों में अलग - अलग हो सकता है । ग्रामीण स्थानीय स्वशाषी निकाय को आम भाषा में पंचायती राज कहते हैं ।
🔹 हर गाँव ( कुछ राज्यों में गाँवों का एक समूह ) में एक ग्राम पंचायत होती है । यह कई वार्ड सदस्य ( पंच ) का एक समूह होता है । पंचायत के अध्यक्ष को सरपंच कहते हैं ।
🔹 पंचायत के सदस्यों का चुनाव उस पंचायत में रहने वाले वयस्कों द्वारा किया जाता है । स्थानीय स्वशासी संरचना जिला के स्तर तक होती है ।
✴️ पंचायत समिति : कुछ ग्राम पंचायतों को मिलाकर एक पंचायत समिति या प्रखंड या मंडल बनता है । इस मंडली के सदस्यों का चुनाव उस क्षेत्र के सभी पंचायतों के सदस्यों द्वारा किया जाता है ।
✴️ जिला परिषद : एक जिले की सारी पंचायत समितियाँ मिलकर जिला परिषद का निर्माण करती हैं । जिला परिषद के अधिकतर सदस्य चुनकर आते हैं । उस जिले के लोक सभा के सदस्य , विधान सभा के सदस्य और जिला स्तर के अन्य निकायों के कुछ अधिकारी भी जिला परिषद के सदस्य होते हैं । जिला परिषद का राजनैतिक मुखिया जिला परिषद का अध्यक्ष होता है ।
✴️ नगरपालिका : इसी तरह से शहरी क्षेत्रों में भी स्थानीय स्वशासी निकाय होती है । शहरों में नगरपालिका का गठन होता है । बड़े शहरों में म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन का गठन होता है । इनके सदस्य ( वार्ड काउंसिलर ) लोगों द्वारा चुने जाते हैं । फिर ये सदस्य अपने चेअरमैन का चुनाव करते हैं । म्यूनिसिपल कॉरपोरेशन में इसे मेयर कहा जाता है ।
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