10 Class Science Notes in hindi chapter 8 How do Organisms Reproduce Reproduction अध्याय - 8 जीव जनन कैसे करते हैं
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Class 10th Science chapter 8 How do Organisms Reproduce Reproduction Notes in Hindi
📚 अध्याय - 8 📚
👉 जीव जनन कैसे करते हैं 👈
✳️ जनन :-
🔹 ( i ) जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं । यह पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है ।
🔹 ( ii ) कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी . एन . ए . ( DNA- डिऑक्सीराइबो न्यूक्लीक अम्ल ) के अणुओं में आनुवंशिक गुण होते हैं ।
🔹 ( iii ) डी . एन . ए . ( DNA ) प्रतिकृति बनाता है तथा नई कोशिकाएँ बनाता है । इससे कोशिकाओं में विभिन्नता उत्पन्न होती है । ये नई कोशिकाएँ एकसमान हैं परन्तु समरूप नहीं ।
✳️ विभिन्नता का महत्त्व :-
🔹 ( i ) लम्बे समय तक प्रजाति ( स्पीशीज ) की उत्तर — जीविता बनाए रखने में उपयोगी ।
🔹 ( ii ) जैस विकास का आधार ।
✳️ प्रजनन के प्रकार :-
👉 ( i ) अलैंगिक प्रजनन
👉 ( ii ) लैंगिक प्रजनन
✳️ ( i ) अलैंगिक प्रजनन
🔹 एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है ।
🔹 युग्मक का निर्माण नहीं होता है ।
🔹 नया जीव पैतृक जीव के समान / समरूप होता है ।
🔹 सतत् गुणन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी माध्यम है ।
🔹 यह निम्न वर्ग के जीवों में अधिक पाया जाता है ।
✳️ ( ii ) लैंगिक प्रजनन :-
🔹 दो एकल जीव ( एक नर व एक मादा ) मिलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं ।
🔹 नर युग्मक व मादा युग्मक बनते हैं । .
🔹 नया जीव अनुवांशिक रूप से पैतृक जीवों के समान होता है परन्तु समरूप नहीं ।
🔹 प्रजाति में विभिन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है ।
🔹 उच्च वर्ग के जीवों में पाया जाता है ।
✳️ अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ :-
✴️ ( i ) विखंडन — इस प्रक्रम में एक कोशिका दो या दो से अधिक कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है ।
🔷 ( क ) द्विखंडन — जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है ।
🔹 उदाहरण — अमीबा , लेस्मानिया
🔷 ( ख ) बहुखंडन — जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है ।
🔹 उदाहरण — प्लैज्मोडियम
✴️ ( ii ) खंडन — इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे - छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है । ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं ।
🔹 उदाहरण :- स्पाइरोगाइरा
✴️ ( iii ) पुनरुद्भवन ( पुनर्जनन ) — इस प्रक्रम में किसी कारणवश , जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है , तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है ।
🔹 उदाहरण — प्लेनेरिया , हाइड्रा
✴️ ( iv ) मुकुलन — इस प्रक्रम में , जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं । यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है ।
🔹 उदाहरण हाइड्रा , यीस्ट ( खमीर )
✴️ ( v ) बीजाणु समासंघ — कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं । बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं । अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं ।
✴️ ( vi ) कायिक प्रवर्धन — कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़ , तना पत्तियाँ आदि से होता है , इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं ।
🔷 ( a ) प्राकृतिक विधियाँ :-
🔹 जड़ द्वारा - डहेलिया , शकरकंदी
🔹 तने द्वारा - आलू , अदरक
🔹 पत्तियों द्वारा - ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं , जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है ।
🔷 ( b ) कृत्रिम विधियाँ :-
🔹 रोपण - आम
🔹 कर्तन - गुलाब
🔹 लेयरिंग - चमेली
✳️ऊतक संवर्धन - इस विधि में शाखा के सिरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में रखा जाता है । ये कोशिकाएँ गुणन कर कोशिकाओं के गुच्छे जिसे कैलस कहते हैं में परिवर्तित हो जाती है । कैलस को हॉर्मोन माध्यम में रखा जाता है , जहाँ उसमें विभेदन होकर नए पौधे का निर्माण होता है जिसे फिर मिट्टी में रोपित कर देते है ।
🔹 उदहारण - आर्किक , सजावटी पौधे ।
✳️ कायिक संवर्धन के लाभ
🔹 बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे ; जैसे — केला , गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं ।
🔹 नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं ।
🔹 बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है ।
🔹 पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है ।
✳️ लैंगिक प्रजनन :-
🔹 लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है ।
🔹 नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं ।
🔹 संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है ।
✳️ पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन :-
🔹 फूल पौधे का जनन अंग है ।
🔹 एक फूल के मुख्य भाग — बाह्य दल , पंखुडी , स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर होते हैं ।
✳️ फूल के प्रकार :-
✴️ ( i ) उभयलिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर व पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं । उदाहरण — सरसों , गुड़हल ।
✴️ ( ii ) एक लिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर और पुंकेसर में से कोई एक ही जननांग उपस्थित होता है ।
🔷 उदाहरण — पपीता , तरबूज ।
✳️ पुष्प की संरचना :-
✳️ बीज निर्माण की प्रक्रिया :-
🔹 ( i ) परागकोश में उत्पन्न परागकण , हवा , पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिक्राग ( स्वपरागण ) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र ( परपरागण ) पर स्थानांतरित हो जाते हैं ।
🔹 ( ii ) परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है ।
🔹 ( iii ) अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है ,
🔹 ( iv ) युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है । बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है ।
🔹 ( v ) अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं ।
✳️ मानव में प्रजनन :-
🔹 मानवों में लैंगिक जनन होता है ।
🔹 लैंगिक परिपक्वता — जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड - कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है । किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं ।
✳️ यौवनारंभ पर परिवर्तन :-
✴️ ( a ) किशोरों में एक समान
🔹 कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना ।
🔹 त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना ।
✴️ ( b ) लड़कियों में
🔹 स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है ।
🔹 रजोधर्म होने लगता है ।
✴️ ( c ) लड़कों में
🔹 चेहरे पर दाढ़ी - मूंछ निकलना ।
🔹 आवाज का फटना ।
👉 ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है । .
✳️ नर जनन तंत्र
✴️ ( i ) वृषण - वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में उपस्थित होते हैं । वृषण कोष तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है , जो शुक्राणु बनने के लिए आवश्यक है ।
🔹 नर युग्मक ( शुक्राणु ) यहाँ पर बनते हैं ।
🔹 वृषण ग्रन्थी , टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है ।
✴️ टेस्टोस्टेरॉन के कार्य :
🔹 ( a ) शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण
🔹 ( b ) लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन
✴️ ( ii ) शुक्रवाहिनी - ये शुक्राणुओं को वृषण से शिश्न तक पहुँचाती है ।
✴️ ( iii ) मूत्रमार्ग - यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं । बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं ।
✴️ ( iv ) संबंधित ग्रंथियाँ - शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं ।
👉 इससे -
🔹 शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं ।
🔹 यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है ।
🔹 उनके स्थानांतरण में सहायता करता है । शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं ।
✳️ मादा जनन तंत्र
✴️ ( i ) अंडाशय -
🔹 मादा युग्मक अथवा अंड - कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है ।
🔹 लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं ।
🔹 यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं ।
🔹 दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है ।
🔹 अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है ।
✴️ ( ii ) अंडवाहिका ( फेलोपियन ट्यूब ) -
🔹 अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है ।
🔹 अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है ।
✴️ ( iii ) गर्भाशय -
🔹 यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है ।
🔹 गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता हैं ।
✳️ जब अंड - कोशिका का निषेचन होता है :-
🔹 निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है , जो गर्भाशय में रोपित होता है । गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है ।
🔹 प्लेसेंटा — यह एक विशिष्ट उत्तक हैं जिसकी तश्तरीनुमा संरचना गर्भाशय में धंसी होती है ।
🔹 इसका मुख्य कार्य
🔹 ( i ) माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि ( पोषण ) भ्रूण को प्रदान करना ।
🔹 ( ii ) भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान ।
🔹 अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं । इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है ।
✳️ जब अंड का निषेचन नहीं होता
🔹 हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है ।
🔹 गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है । यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है ।
🔹 यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती । अतः यह पर्त धीरे - धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है ।
🔹 यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं ।
🔹 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है । फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं ।
✳️ जनन स्वास्थ्य :-
🔹 जनन स्वास्थ्य का अर्थ है , जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक , मानसिक , सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना ।
🔹 रोगों का लैंगिक संचरण - ( STD's ) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है ; जैसे—
( a ) जीवाणु जनित — गोनेरिया , सिफलिस
( b ) विषाणु जनित — मस्सा ( warts ) , HIV - AIDS
कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है ।
🔹 गर्भरोधन - गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है । .
✳️ गर्भरोधन के प्रकार
✴️ ( a ) यांत्रिक अवरोध :-
🔹 शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता ।
👉 उदाहरण :-
🔹 शिश्न को ढकने वाले कंडोम
🔹 योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप
✴️ ( b ) रासायनिक तकनीक
🔹 मादा में अंड को न बनने देना , इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है ।
🔹 इनके अन्य प्रभाव ( विपरीत प्रभाव ) भी हो सकते हैं ।
✴️ ( c ) IUCD ( Intra Uterine contraceptive device ) :-
🔹 लूप या कॉपर- T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है । जिससे गर्भधारण नहीं होता ।
✴️ ( d ) शल्यक्रिया तकनीक :-
🔷 ( i ) नसबंधी – पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर , उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना ।
🔷 ( ii ) ट्यूबेक्टोमी — महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर , अंड के स्थानांतरण को . रोकना ।
✳️ भ्रूण हत्या - मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है ।
एक स्वस्थ्य समाज के लिए , संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है । यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा ।
✳️ जनन :-
🔹 ( i ) जनन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा सजीव अपने जैसे नए जीव उत्पन्न करते हैं । यह पृथ्वी पर जीवन की निरंतरता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है ।
🔹 ( ii ) कोशिका के केन्द्रक में पाए जाने वाले गुणसूत्रों के डी . एन . ए . ( DNA- डिऑक्सीराइबो न्यूक्लीक अम्ल ) के अणुओं में आनुवंशिक गुण होते हैं ।
🔹 ( iii ) डी . एन . ए . ( DNA ) प्रतिकृति बनाता है तथा नई कोशिकाएँ बनाता है । इससे कोशिकाओं में विभिन्नता उत्पन्न होती है । ये नई कोशिकाएँ एकसमान हैं परन्तु समरूप नहीं ।
✳️ विभिन्नता का महत्त्व :-
🔹 ( i ) लम्बे समय तक प्रजाति ( स्पीशीज ) की उत्तर — जीविता बनाए रखने में उपयोगी ।
🔹 ( ii ) जैस विकास का आधार ।
✳️ प्रजनन के प्रकार :-
👉 ( i ) अलैंगिक प्रजनन
👉 ( ii ) लैंगिक प्रजनन
✳️ ( i ) अलैंगिक प्रजनन
🔹 एकल जीव नए जीव उत्पन्न करता है ।
🔹 युग्मक का निर्माण नहीं होता है ।
🔹 नया जीव पैतृक जीव के समान / समरूप होता है ।
🔹 सतत् गुणन के लिए यह एक बहुत ही उपयोगी माध्यम है ।
🔹 यह निम्न वर्ग के जीवों में अधिक पाया जाता है ।
✳️ ( ii ) लैंगिक प्रजनन :-
🔹 दो एकल जीव ( एक नर व एक मादा ) मिलकर नया जीव उत्पन्न करते हैं ।
🔹 नर युग्मक व मादा युग्मक बनते हैं । .
🔹 नया जीव अनुवांशिक रूप से पैतृक जीवों के समान होता है परन्तु समरूप नहीं ।
🔹 प्रजाति में विभिन्नताएँ उत्पन्न करने में सहायक होता है ।
🔹 उच्च वर्ग के जीवों में पाया जाता है ।
✳️ अलैंगिक प्रजनन की विधियाँ :-
✴️ ( i ) विखंडन — इस प्रक्रम में एक कोशिका दो या दो से अधिक कोशिकाओं में विभाजित हो जाती है ।
🔷 ( क ) द्विखंडन — जीव दो कोशिकाओं में विभाजित होता है ।
🔹 उदाहरण — अमीबा , लेस्मानिया
🔷 ( ख ) बहुखंडन — जीव बहुत सारी कोशिकाओं में विभाजित हो जाता है ।
🔹 उदाहरण — प्लैज्मोडियम
✴️ ( ii ) खंडन — इस प्रजनन विधि में सरल संरचना वाले बहुकोशिकीय जीव विकसित होकर छोटे - छोटे टुकड़ों में खंडित हो जाता है । ये टुकड़े वृद्धि कर नए जीव में विकसित हो जाते हैं ।
🔹 उदाहरण :- स्पाइरोगाइरा
✴️ ( iii ) पुनरुद्भवन ( पुनर्जनन ) — इस प्रक्रम में किसी कारणवश , जब कोई जीव कुछ टुकड़ों में टूट जाता है , तब प्रत्येक टुकड़ा नए जीव में विकसित हो जाता है ।
🔹 उदाहरण — प्लेनेरिया , हाइड्रा
✴️ ( iv ) मुकुलन — इस प्रक्रम में , जीव के शरीर पर एक उभार उत्पन्न होता है जिसे मुकुल कहते हैं । यह मुकुल पहले नन्हें फिर पूर्ण जीव में विकसित हो जाता है तथा जनक से अलग हो जाता है ।
🔹 उदाहरण हाइड्रा , यीस्ट ( खमीर )
✴️ ( v ) बीजाणु समासंघ — कुछ जीवों के तंतुओं के सिरे पर बीजाणु धानी बनती है जिनमें बीजाणु होते हैं । बीजाणु गोल संरचनाएँ होती हैं जो एक मोटी भित्ति से रक्षित होती हैं । अनुकूल परिस्थिति मिलने पर बीजाणु वृद्धि करने लगते हैं ।
✴️ ( vi ) कायिक प्रवर्धन — कुछ पौधों में नए पौधे का निर्माण उसके कायिक भाग जैसे जड़ , तना पत्तियाँ आदि से होता है , इसे कायिक प्रवर्धन कहते हैं ।
🔷 ( a ) प्राकृतिक विधियाँ :-
🔹 जड़ द्वारा - डहेलिया , शकरकंदी
🔹 तने द्वारा - आलू , अदरक
🔹 पत्तियों द्वारा - ब्रायोफिलम की पत्तियों की कोर पर कलिकाएँ होती हैं , जो विकसित होकर नया पौधा बनाती है ।
🔷 ( b ) कृत्रिम विधियाँ :-
🔹 रोपण - आम
🔹 कर्तन - गुलाब
🔹 लेयरिंग - चमेली
✳️ऊतक संवर्धन - इस विधि में शाखा के सिरे से कोशिकाएँ लेकर उन्हें पोषक माध्यम में रखा जाता है । ये कोशिकाएँ गुणन कर कोशिकाओं के गुच्छे जिसे कैलस कहते हैं में परिवर्तित हो जाती है । कैलस को हॉर्मोन माध्यम में रखा जाता है , जहाँ उसमें विभेदन होकर नए पौधे का निर्माण होता है जिसे फिर मिट्टी में रोपित कर देते है ।
🔹 उदहारण - आर्किक , सजावटी पौधे ।
✳️ कायिक संवर्धन के लाभ
🔹 बीज उत्पन्न न करने वाले पौधे ; जैसे — केला , गुलाब आदि के नए पौधे बना सकते हैं ।
🔹 नए पौधे आनुवंशिक रूप में जनक के समान होते हैं ।
🔹 बीज रहित फल उगाने में मदद मिलती है ।
🔹 पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है ।
✳️ लैंगिक प्रजनन :-
🔹 लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है ।
🔹 नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं ।
🔹 संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है ।
✳️ पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन :-
🔹 फूल पौधे का जनन अंग है ।
🔹 एक फूल के मुख्य भाग — बाह्य दल , पंखुडी , स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर होते हैं ।
✳️ फूल के प्रकार :-
✴️ ( i ) उभयलिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर व पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं । उदाहरण — सरसों , गुड़हल ।
✴️ ( ii ) एक लिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर और पुंकेसर में से कोई एक ही जननांग उपस्थित होता है ।
🔷 उदाहरण — पपीता , तरबूज ।
✳️ पुष्प की संरचना :-
🔹 पौधे उगाने का सस्ता और आसान तरीका है ।
✳️ लैंगिक प्रजनन :-
🔹 लैंगिक प्रजनन नर व मादा युग्मक के मिलने से होता है ।
🔹 नर व मादा युग्मक के मिलने के प्रक्रम को निषेचन कहते हैं ।
🔹 संतति में विभिन्नता उत्पन्न होती है ।
✳️ पुष्पी पौधों में लैंगिक जनन :-
🔹 फूल पौधे का जनन अंग है ।
🔹 एक फूल के मुख्य भाग — बाह्य दल , पंखुडी , स्त्रीकेसर एवं पुंकेसर होते हैं ।
✳️ फूल के प्रकार :-
✴️ ( i ) उभयलिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर व पुंकेसर दोनों उपस्थित होते हैं । उदाहरण — सरसों , गुड़हल ।
✴️ ( ii ) एक लिंगी पुष्प — स्त्रीकेसर और पुंकेसर में से कोई एक ही जननांग उपस्थित होता है ।
🔷 उदाहरण — पपीता , तरबूज ।
✳️ पुष्प की संरचना :-
✳️ बीज निर्माण की प्रक्रिया :-
🔹 ( i ) परागकोश में उत्पन्न परागकण , हवा , पानी या जन्तु द्वारा उसी फूल के वर्तिक्राग ( स्वपरागण ) या दूसरे फूल के वर्तिकाग्र ( परपरागण ) पर स्थानांतरित हो जाते हैं ।
🔹 ( ii ) परागकण से एक नलिका विकसित होती है जो वर्तिका से होते हुए बीजांड तक पहुँचती है ।
🔹 ( iii ) अंडाशय के अन्दर नर व मादा युग्मक का निषेचन होता है तथा युग्मनज का निर्माण होता है ,
🔹 ( iv ) युग्मनज में विभाजन होकर भ्रूण का निर्माण होता है । बीजांड से एक कठोर आवरण विकसित होकर बीज में बदल जाता है ।
🔹 ( v ) अंडाशय फल में बदल जाता है तथा फूल के अन्य भाग झड़ जाते हैं ।
✳️ मानव में प्रजनन :-
🔹 मानवों में लैंगिक जनन होता है ।
🔹 लैंगिक परिपक्वता — जीवन का वह काल जब नर में शुक्राणु तथा मादा में अंड - कोशिका का निर्माण शुरू हो जाता है । किशोरावस्था की इस अवधि को यौवनारंभ कहते हैं ।
✳️ यौवनारंभ पर परिवर्तन :-
✴️ ( a ) किशोरों में एक समान
🔹 कांख व जननांग के पास गहरे बालों का उगना ।
🔹 त्वचा का तैलीय होना तथा मुँहासे निकलना ।
✴️ ( b ) लड़कियों में
🔹 स्तन के आकार में वृद्धि होने लगती है ।
🔹 रजोधर्म होने लगता है ।
✴️ ( c ) लड़कों में
🔹 चेहरे पर दाढ़ी - मूंछ निकलना ।
🔹 आवाज का फटना ।
👉 ये परिवर्तन संकेत देते हैं कि लैंगिक परिपक्वता हो रही है । .
✳️ नर जनन तंत्र
✴️ ( i ) वृषण - वृषण उदर गुहा के बाहर वृषण कोष में उपस्थित होते हैं । वृषण कोष तापमान तुलनात्मक रूप से कम होता है , जो शुक्राणु बनने के लिए आवश्यक है ।
🔹 नर युग्मक ( शुक्राणु ) यहाँ पर बनते हैं ।
🔹 वृषण ग्रन्थी , टेस्टोस्टेरॉन हार्मोन उत्पन्न करती है ।
✴️ टेस्टोस्टेरॉन के कार्य :
🔹 ( a ) शुक्राणु उत्पादन का नियंत्रण
🔹 ( b ) लड़कों में यौवनावस्था परिवर्तन
✴️ ( ii ) शुक्रवाहिनी - ये शुक्राणुओं को वृषण से शिश्न तक पहुँचाती है ।
✴️ ( iii ) मूत्रमार्ग - यह मूत्र और वीर्य दोनों के बाहर जाने का मार्ग हैं । बाहरी आवरण के साथ इसे शिश्न कहते हैं ।
✴️ ( iv ) संबंधित ग्रंथियाँ - शुक्राशय ग्रथि तथा प्रोस्ट्रेट ग्रंथि अपने स्राव शुक्रवाहिनी में डालते हैं ।
👉 इससे -
🔹 शुक्राणु तरल माध्यम में आ जाते हैं ।
🔹 यह माध्यम उन्हें पोषण प्रदान करता है ।
🔹 उनके स्थानांतरण में सहायता करता है । शुक्राणु तथा ग्रंथियों का स्राव मिलकर वीर्य बनाते हैं ।
✳️ मादा जनन तंत्र
✴️ ( i ) अंडाशय -
🔹 मादा युग्मक अथवा अंड - कोशिका का निर्माण अंडाशय में होता है ।
🔹 लड़की के जन्म के समय ही अंडाशय में हजारों अपरिपक्व अंड होते हैं ।
🔹 यौवनारंभ पर इनमें से कुछ अंड परिपक्व होने लगते हैं ।
🔹 दो में से एक अंडाशय द्वारा हर महीने एक परिपक्व अंड उत्पन्न किया जाता है ।
🔹 अंडाशय एस्ट्रोजन व प्रोजैस्ट्रोन हॉर्मोन भी उत्पन्न करता है ।
✴️ ( ii ) अंडवाहिका ( फेलोपियन ट्यूब ) -
🔹 अंडाशय द्वारा उत्पन्न अंड कोशिका को गर्भाशय तक स्थानांतरण करती है ।
🔹 अंड कोशिका व शुक्राणु का निषेचन यहाँ पर होता है ।
✴️ ( iii ) गर्भाशय -
🔹 यह एक थैलीनुमा संरचना है जहाँ पर शिशु का विकास होता है ।
🔹 गर्भाशय ग्रीवा द्वारा योनि में खुलता हैं ।
✳️ जब अंड - कोशिका का निषेचन होता है :-
🔹 निषेचित अंड युग्मनज कहलाता है , जो गर्भाशय में रोपित होता है । गर्भाशय में रोपण के पश्चात् युग्मनज में विभाजन व विभेदन होता है तथा भ्रूण का निर्माण होता है ।
🔹 प्लेसेंटा — यह एक विशिष्ट उत्तक हैं जिसकी तश्तरीनुमा संरचना गर्भाशय में धंसी होती है ।
🔹 इसका मुख्य कार्य
🔹 ( i ) माँ के रक्त से ग्लूकोज ऑक्सीजन आदि ( पोषण ) भ्रूण को प्रदान करना ।
🔹 ( ii ) भ्रूण द्वारा उत्पादित अपशिष्ट पदार्थों का निपटान ।
🔹 अंड के निषेचन से लेकर शिशु के जन्म तक के समय को गर्भकाल कहते हैं । इसकी अवधि लगभग 9 महीने होती है ।
✳️ जब अंड का निषेचन नहीं होता
🔹 हर महीने गर्भाशय खुद को निषेचित अंड प्राप्त करने के लिए तैयार करता है ।
🔹 गर्भाशय की भित्ती मांसल एवं स्पोंजी हो जाती है । यह भ्रूण के विकास के लिए जरूरी है ।
🔹 यदि निषेचन नहीं होता है तो इस भित्ति की आवश्यकता नहीं रहती । अतः यह पर्त धीरे - धीरे टूट कर योनि मार्ग से रक्त एवं म्यूकस के रूप में बाहर निकलती है ।
🔹 यह चक्र लगभग एक महीने का समय लेता है तथा इसे ऋतुस्राव अथवा रजोधर्म कहते हैं ।
🔹 40 से 50 वर्ष की उम्र के बाद अंडाशय से अंड का उत्पन्न होना बन्द हो जाता है । फलस्वरूप रजोधर्म बन्द हो जाता है जिसे रजोनिवृति कहते हैं ।
✳️ जनन स्वास्थ्य :-
🔹 जनन स्वास्थ्य का अर्थ है , जनन से संबंधित सभी आयाम जैसे शारीरिक , मानसिक , सामाजिक एवं व्यावहारिक रूप से स्वस्थ्य होना ।
🔹 रोगों का लैंगिक संचरण - ( STD's ) अनेक रोगों का लैंगिक संचरण भी हो सकता है ; जैसे—
( a ) जीवाणु जनित — गोनेरिया , सिफलिस
( b ) विषाणु जनित — मस्सा ( warts ) , HIV - AIDS
कंडोम के उपयोग से इन रोगों का संचरण कुछ सीमा तक रोकना संभव है ।
🔹 गर्भरोधन - गर्भधारण को रोकना गर्भरोधन कहलाता है । .
✳️ गर्भरोधन के प्रकार
✴️ ( a ) यांत्रिक अवरोध :-
🔹 शुक्राणु को अंडकोशिका तक नहीं पहुँचने दिया जाता ।
👉 उदाहरण :-
🔹 शिश्न को ढकने वाले कंडोम
🔹 योनि में रखे जाने वाले सरवाइकल कैप
✴️ ( b ) रासायनिक तकनीक
🔹 मादा में अंड को न बनने देना , इसके लिए दवाई ली जाती है जो हॉर्मोन के संतुलन को परिवर्तित कर देती है ।
🔹 इनके अन्य प्रभाव ( विपरीत प्रभाव ) भी हो सकते हैं ।
✴️ ( c ) IUCD ( Intra Uterine contraceptive device ) :-
🔹 लूप या कॉपर- T को गर्भाशय में स्थापित किया जाता है । जिससे गर्भधारण नहीं होता ।
✴️ ( d ) शल्यक्रिया तकनीक :-
🔷 ( i ) नसबंधी – पुरुषों में शुक्रवाहिकाओं को रोक कर , उसमें से शुक्राणुओं के स्थानांतरण को रोकना ।
🔷 ( ii ) ट्यूबेक्टोमी — महिलाओं में अंडवाहनी को अवरुद्ध कर , अंड के स्थानांतरण को . रोकना ।
✳️ भ्रूण हत्या - मादा भ्रूण को गर्भाशय में ही मार देना भ्रूण हत्या कहलाता है ।
एक स्वस्थ्य समाज के लिए , संतुलित लिंग अनुपात आवश्यक है । यह तभी संभव होगा जब लोगों में जागरूकता फैलाई जाएगी व भ्रूण हत्या तथा भ्रूण लिंग निर्धारण जैसी घटनाओं को रोकना होगा ।
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