Class 11 micro Economics CBSE Notes chapter 5 Consumer ' s Equilibrium and Demand ( 5 . उपभोक्ता का व्यवहार और माँग ) in hindi Medium 2019 , 2020 latest
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11 वीं कक्षा के अर्थशास्त्र सीबीएसई नोट्स अध्याय 5 उपभोक्ता संतुलन और मांग हिंदी में।
Class 11 micro Economics CBSE Notes chapter 5 Consumer ' s Equilibrium and Demand
• उपयोगिता : किसी वस्तु का वह गुण , जो किसी मानवीय आवश्यकता को संतुष्ट करता है , उपयोगिता कहलाती है ।
• कुल उपयोगिता : एक निश्चित समय में वस्तु की सभी इकाइयों का उपयोग करने पर प्राप्त संतुष्टि का योग कुल उपयोगिता कहलाता है ।
• सीमांत उपयोगिता : वस्तु की एक अतिरिक्त इकाई का उपभोग करने पर कुल उपयोगिता में होने वाली निवल वृद्धि को सीमांत उपयोगिता कहते हैं ।
• ह्रासमान सीमांत उपयोगिता नियम : किसी वस्तु की इकाइयों का लगातार एक से अधिक इकाइयों का लगातार उपभोग करने पर प्रत्येक अगली इकाई से प्राप्त होन वाली सीमांत उपयोगिता क्रमशः घटती चली जाती है ।
• उपभोक्ता बंडल : उपभोक्ता बंडल दो वस्तुओं की मात्राओं का ऐसा संयोजन अथवा समूह है जिन्हें उपभोक्ता वस्तुओं की कीमत तथा अपनी दी हुई आय के आधार पर खरीद सकता है ।
• उपभोक्ता बजट : उपभोक्ता का बजट उसकी वास्तविक आय या क्रय शक्ति को बताता है जिसके द्वारा वह दी हुई कीमत वाली वस्तुओं की निश्चित मात्रा खरीद सकता है ।
• बजट सेट : यह उपभोक्ता के समस्त संयोजनों का या बंडलों का सेट है , जो वह अपनी मौद्रिक आय के अन्तर्गत प्रचलित कीमतों पर खरीद सकता है ।
बजट सेट का समीकरण : - M>Px . X + Py . Y
• बजट रेखा : वह रेखा , जो दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोजनों को दर्शाती है जिसे उपभोक्ता अपनी समस्त आय का व्यय करके वस्तुओं की दी गई कीमत पर खरीद सकता है ।
बजट रेखा का समीकरण : M = Px . x + Py . Y
• सीमांत प्रतिस्थापन दर : वह दर जिस पर उपभोक्ता वस्तु x की एक अतिरिक्त इकाई प्राप्त करने के लिए वस्तु y की जितनी मात्रा त्यागने के लिए तैयार है ।
सीमान्त प्रतिस्थापन दर-
• अनधिमान वक्र : अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के उन विभिन्न संयोगों को दर्शाता है , जो उपभोक्ता को समान स्तर की उपयोगिता अथवा संतुष्टि प्रदान करता है ।
• अनधिमान मानचित्र : एक उपभोक्ता के अनधिमान वक्रों के समूह को अनधिमान मानचित्र कहते हैं ।
अनधिमान वक्रों की विशेषताएं :
1. अनधिमान वक्र ऋणात्मक ढलान वाले होते हैं- क्योंकि एक वस्तु की इकाईयों की अधिक मात्रा का उपभोग बढाने के लिए यह आवश्यक है कि दूसरी वस्तु की इकाइयों का त्याग किया जाए ताकि संतुष्टि स्तर समान रहे ।
2 . अनधिमान वक्र मूल बिन्दु की ओर उन्नतोदर होता है- क्योंकि सीमान्त प्रतिस्थापन की दर घटती हुई होती है अर्थात उपभोक्ता एक वस्तु की अधिक मात्रा का उपभोग बढ़ाने के लिए दूसरी वस्तु की इकाईयों का त्याग घटती दर पर करने के लिए तैयार होता है ।
3 . अनधिमान वक्र न तो कभी एक - दूसरे को छते हैं और न ही काटते हैं क्योंकि दो अनधिमान वक्र संतुष्टि के दो अलग - अलग स्तरों को प्रदर्शित करते है । यदि ये एक दूसरे को काटे तो कटाव बिन्दु पर संतुष्टि का स्तर समान होगा जो कि सम्भव नहीं है ।
4 . ऊँचा अनधिमान वक्र संतुष्टि के ऊँचे स्तर को प्रकट करता है - यह उपभोक्ता के एक दिष्ट अधिमान के कारण होता है । उच्च अनधिमान वक्र दो वस्तुओं के उन बंडलों को दिखाता है जिस पर निम्न अनधिमान वक्र की तुलना में एक वस्तु की मात्रा अधिक है तथा दूसरी की कम नहीं है ।
• प्रतिस्थापन वस्तु : जब प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत घटती है तो वह दी हुई वस्तु की तुलना में सस्ती हो जाती है इसलिए उपभोक्ता इसे दी हुई वस्तु के स्थान पर प्रतिस्थापित करता है इससे दी हुई वस्तु की मांग घटती जाएगी । इसी प्रकार प्रतिस्थापन वस्तु की कीमत बढ़ने से दी हुई वस्तु की माँग बढ़ जाएगी । उदाहरण : चाय और कॉफी आदि ।
• पूरक वस्तुएँ : जब पूरक वस्तु की कीमत घटती है तो उसकी माँग बढ़ जाती है और उसके साथ दी हुई वस्तु की मांग भी बढ़ जाती है । इसी प्रकार जब पूरक वस्तु की कीमत बढ़ती है तो साथ दी हुई वस्तु की माँग घट जाती है । उदाहरण : कार तथा पेट्रोल आदि ।
• सामान्य वस्तुएँ : सामान्य वस्तुएँ उन वस्तुओं को कहते हैं जिनकी माँग क्रेताओं की आय के बढ़ने पर बढ़ती है । अतः आय और माँग में धनात्मक सम्बन्ध पाया जाता है अथवा आय प्रभाव धनात्मक होता है ।
• घटिया वस्तुएँ ( निम्नकोटि वस्तुएँ ) : घटिया ( निम्नकोटि ) वस्तुएँ उन वस्तुओं को कहते हैं जिनकी मांग क्रेताओं की आय के बढने पर घटती है अत : आय और मांग में ऋणात्मक सम्बन्ध पाया जाता है । उदाहरण : मोटा अनाज तथा मोटा कपड़ा
• एक दिष्ट अधिमान : उपभोक्ता का अधिमान एकदिष्ट है जब उपभोक्ता दो बंडलों के मध्य सदैव उस बंडल को प्राथमिकता देता है , जिसमें दूसरे बंडल की तुलना में कम से कम एक वस्तु की अधिक मात्रा होती है और दूसरे वस्तु की कम मात्रा नहीं होती है ।
• बजट रेखा में परिवर्तन :
• बजट रेखा में खिसकाव ( दायें तथा बायें ) उपभोक्ता की आय में परिवर्तन तथा वस्तुओं के मूल्य में परिवर्तन के कारण होता है ।
• उपभोक्ता संतुलन : एक ऐसी स्थिति जहाँ उपभोक्ता अपनी आय को इस प्रकार व्यय करता है कि उसे अधिकतम संतुष्टि प्राप्त हो ।
• उपभोक्ता संतुलन की शर्ते :
1 . उपयोगिता विश्लेषण ( उपयोगिता की गणनावाचक अवधारणा ) : इस अवधारणा के अनुसार , उपयोगिता की गणना ' यूटिलस ' में की जा सकती है । _ ' यूटिल ' को उपयोगिता के मपा इकाई कहते हैं ।
2 . अनधिमान वक्र विश्लेषण ( उपयोगिता की क्रमवाचक अवधारणा ) : इस अवधारणा के अनुसार उपयोगिता की संख्या में गणना नहीं की जा सकती , परन्तु उसे क्रम के रूप में प्रदर्शित कर सकते हैं
• माँग मात्रा : वस्तु की वह मात्रा जिसे उपभोक्ता किसी निश्चित कीमत एवं निश्चित समय पर खरीदता है या खरीदने के लिए तैयार होता है ।
• बाजार माँग : एक निश्चित समयावधि में कीमत के एक विभिन्न स्तरों पर किसी बाजार में सभी उपभोक्ताओं द्वारा वस्तु की खरीदी गई मात्राओं का योग _ ' बाजार मांग ' कहलाता है ।
• माँग फलन : यह किसी वस्तु की माँग तथा उसे प्रभावित करने वाले कारकों के मध्य फलनात्मक सम्बन्ध को बताता है ।
D = f ( Px , Pr , Y , T , E , N , Yd ) .
• माँग का नियम : यह बताता है कि यदि अन्य बातें समान हों तो किसी वस्तु की कीमत में वृद्धि होने से उसकी माँग मात्रा घटती है और उस वस्तु की कीमत में कमी होने से उसकी माँग मात्रा बढ़ती है अर्थात् कीमत तथा माँग मात्रा में ऋणात्मक संबंध होता है ।
• माँग अनुसूची : माँग अनुसूची वह तालिका है जो विभिन्न कीमत स्तरों पर एक वस्तु की माँग मात्राओं को दर्शाती है ।
• माँग वक्र : माँग तालिका ( अनुसूची ) का रेखाचित्रीय प्रस्तुतीकरण माँग वक्र कहलाता है । अर्थात माँग वक्र कीमत के विभिन्न स्तरों पर माँग मात्राओं को दर्शाने वाला वक्र है । यह ऋणात्मक ढाल का होता है जो वस्तु की कीमत और उसकी माँग मात्रा में विपरीत सम्बन्ध को बताता है ।
• माँग वक्र एवं उसका ढाल : माँग वक्र का ढाल
• माँग में परिवर्तन : कीमत के समान रहने पर किसी अन्य कारक में परिवर्तन होने से जब वस्तु की माँग घट या बढ़ जाती है ।
• माँग मात्रा में परिवर्तन : वस्तु की अपनी कीमत में परिवर्तन के कारण वस्तु की माँग में परिवर्तन जबकि अन्य कारक समान रहें ।
• माँग की कीमत लोच : माँग की कीमत लोच , कीमत में होने वाले प्रतिशत परिवर्तन के फलस्वरूप माँग की मात्रा में होने वाले प्रतिक्रियात्मक प्रतिशत परिवर्तन को संख्यात्मक रूप में मापती हैं ।
• प्रतिशत या आनुपातिक विधि :
• माँग की कीमत लोच को प्रभावित करने वाले कारक -
( क ) वस्तु की प्रकृति
( ख ) उपभोक्ता की आय
( ग ) निकटतम स्थानापन्न वस्तुओं की उपलब्धता
( घ ) उपभोग के स्थगन की सम्भावना
( ङ ) वस्तु पर व्यय होने वाला आय का भाग
( च ) वस्तु के विविध प्रयोग